महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 22 श्लोक 1-16
द्वाविंश (22) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
मन-बुद्धि और इन्द्रिय रूप सप्त होताओं का, यज्ञ तथा मन- इन्द्रिय संवाद का वर्णन
ब्राह्मण ने कहा- सुभगे! इसी विषय में इस पुरातन इतिहास का भी उदाहरण दिया जाता है। सात होताओं के यज्ञ का जैसा विधान है, उसे सुनो। नासिका, नेत्र, जिह्वा, त्वचा और पाँचवाँ कान, मन और बुद्धि- ये सात होता अलग-अलग रहते हैं। यद्यपि येसभी सूक्षम शरीर में ही निवास करते हैं तो भी एक दूसरे को नहीं देखते हैं। शोभने! इन सात होताओं को तुम स्वभाव से ही पहचानों। ब्राह्मणी ने पूछा- भगवन! जब सभ सूक्षम शरीर में ही रहते हैं, तब एक दूसरे को देख क्यों नहीं पाते? प्रभो! उनके स्वभाव कैसे हैं? यह बताने की कृपा करें। ब्राह्मण ने कहा- प्रिये! (यहाँ देखने का अर्थ है, जानता) गुणों को न जानना ही गणुवान को न जानना कहलाता है और गुणों को जानना ही गुणवान को जानना है। ये नासिका आदि सात होता एक दूसरे के गुणों को कभी नहीं जान पाते हैं (इसीलिये कहा गया है कि ये एक दूसरे को नहीं देखते हैं)। जीभ, आँख, कान, त्वचा, मन और बुद्धि- क्यों बुद्धि विकल्प ये गन्धों को नहीं समझ पाते, किंतु नासिका उसका अनुभव करती है। नासिका, कान, नेत्र, त्वचा, मन और बुद्धि- ये रसों का आस्वादन नहीं कर सकते। केवल जिह्वा उसका स्वाद ले सकती है। नासिका, जीभ, कान, त्वचा, मन और बुद्धि- ये रूप का ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकते, किंतु नेत्र इनका अनुभव करते हैं। नासिका, जीभ, आँख, कान, बुद्धि और मन- ये स्पर्श का अनुभव नहीं कर सकते, किंतु त्वचा को उसका ज्ञान होता है। नासिका, जीभ, आँख, त्वचा, मन और बुद्धि- इन्हें शब्द का ज्ञान नहीं होता है, किंतु कान को होता है। नासिका, जीभ, आँख, त्वचा, कान और बुद्धि- ये संशय (संकल्प-विकल्प) नहीं कर सकते। यह काम मन का है। इसी प्रकार नासिका, जीभ, आँख, त्वचा, कान, और मन- वे किसी बात का निश्चय नहीं कर सकते। निश्चयात्मक ज्ञान तो केवल बुद्धि को होता है। भामिनि! इस विषय में इन्द्रियों और मन के संवादरूप एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है। एक बार मन ने इन्द्रियों से कहा- मेरी सहायता के बिना नासिका सूँघ नहीं सकती, जीभ रस का स्वाद नहीं ले सकती, आँख रूप नहीं देख सकती, त्वचा स्पशर्् का अनुभव नहीं कर सकती और कानों को शब्द नहीं सुनायी दे सकता। इसलिये मैं सब भूतों में श्रेष्ठ और सनातन हूँ। ‘मेरे बिना समस्त इन्द्रियाँ बुझी लपटों वाली आग और सूने घर की भाँति सदा श्रीहीन जान पड़ती हैं।
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Gayatri Pariwar
चेतना की मन, बुद्धि चित्त, अहंकार चेतन-अवचेतन, सुपरचेतन आदि अनेक परतें हो सकती हैं। पर यह सूक्ष्म पर्यवेक्षण है। मोटे तौर पर इन सबका समुच्चय “बुद्धि” के नाम से एक शब्द में भी प्रतिपादित किया जा सकता है। यह चेतना का व्यवहार में निरन्तर काम में आने वाला स्वरूप हैं।
“बुद्धि” एक प्रकार की तराजू है जो जिस पलड़े में अधिक वजन हो उसी की ओर झुक जाती है। आमतौर से लोभ, मोह,और अहंकार का उन्माद हर किसी पर छाया रहता है क्योंकि उसके आधार पर अधिक सुविधाएँ पाने, अहंता की अधिक तृप्ति होने का संयोग बनता है। प्रत्यक्ष में स्वार्थ सिद्धि ही सुखद प्रतीत होती है और उसमें से लाभ उठाने की रसास्वादन करने जैसी अनुभूति होती है। यही कारण है कि सामान्य बुद्धि जो कुछ सोचती है, निर्णय करती है और कर गुजरने का ताना-बाना बुनती है, उसके पीछे यही तथ्य काम करता है कि जो चाहा गया है, वही सरलतापूर्वक उपलब्ध हो। भले ही इसके लिए अधिकारों का अपहरण कर अनाचार बरतना पड़े तथाकथित बुद्धिमान यही करते देखे जाते हैं। बुद्धि के साथ ‘मान’ शब्द जुड़ा है। उससे स्पष्ट है कि बुद्धि + मन दोनों मिलकर बुद्धिमान बनते हैं। भ्रष्टाचार, षडयंत्र, विध्वंसकारी आविष्कार, वकीलों की दलीलें यही वर्ग अपनाता है।
इस स्थिति से निबटने का एक ही विकल्प है कि बुद्धि को भाव संवेदनाओं के साथ जोड़ा जाय, उसे हृदयपरायण बनाया जाय। इसी आस्था को श्रद्धा कहते हैं। इसी का दूसरा नाम भक्ति है, समर्पण है। सदाशयता का, शालीनता का, उत्कृष्टता एवं आदर्शवादिता का समुच्चय ही सद्भावना के नाम से जाना जाता है। इसी की पक्षधर होने पर विचारशक्ति को प्रज्ञा, मेधा, श्रद्धा आदि नामों से जाना जाता है। इस ओर बुद्धि को मोड़-मरोड़ देने की प्रक्रिया ही अध्यात्म साधना के नाम से जानी जाती है। इसी की प्रतिक्रिया व्यक्ति को निश्चिन्त प्रसन्न और प्रफुल्ल बनाती है। समीपवर्ती क्षेत्र में उसी की परिणति सज्जनता, सेवा साधना एवं धर्म धारणा के रूप में परिलक्षित होती है। मनुष्य अपने में स्नेह सौजन्य, सद्भाव और उदार शिष्टाचार बरतने लगे तो स्पष्ट है कि लोगों के बीच चलने वाला सद्व्यवहार ऐसी प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करेगा। जिससे तुष्टि, पुष्टि और शक्ति की कमी न रहे। समृद्धि और प्रगति का पथ प्रशस्त होता चले।
बुद्धि को भाव संवेदनाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिए। आत्मा संयम एवं पुण्य परमार्थ इसी आधार पर बन पड़ता है। बहिरंग जीवन में जो उत्कृष्टता दीख पड़ती है, उसका कारण अन्तरंग की श्रेष्ठता ही होता है। दृष्टिकोण, रुझान और निर्धारण यदि सदाशयता की दिशा अपनाले तो समझना चाहिए कि वह उच्च स्तर प्राप्त हुआ जिसे अध्यात्म की भाषा में ‘भक्ति’ कहते हैं। श्रद्धा इसी का पर्यायवाचक है।
इन दिनों कोई अध्यात्म उपचारों की क्या व्याख्या करता है और उन्हें चरितार्थ करने के लिए क्या क्रिया कृत्य करता है, क्यों बुद्धि विकल्प यह न विचारा जाय तो ही ठीक है। उलटी दिशा में चलने वालों का सोना भी यदि उलटा हो तो आश्चर्य क्या है? विडम्बनाओं और भ्रान्तियों के इस युग में श्रद्धा-भक्ति जैसी उच्चस्तरीय उपचारों के भी यदि दुर्दिन बने तो यही समझना चाहिए कि जब उलटा सोचने और उलटा करने का ही प्रचलन चल पड़ा है तो अध्यात्म तत्वज्ञान ही उससे अछूता कैसे रह सकता है? हमें लोक प्रवाह को नहीं वास्तविक तत्वदर्शन को महत्व देना और उसे ही अपनाना चाहिए।
तर्क और प्रमाण प्रस्तुत करने के फर में प्रायः बुद्धि उसी ओर झुकती है जिसमें तात्कालिक स्वार्थ की सिद्धि होती है। वकील अपने क्लाइण्ट के पक्ष में ही दलीलें देता और उसी को सही सिद्ध करने का प्रयत्न करता है। भले ही वास्तविकता विपरीत ही क्यों न हो? बुद्धि के संबंध में भी यही कहा जा सकता है। उसने इन दिनों अपने प्रतिपक्षी न्याय और प्रेम के प्रतिकूल इतने तर्क खोज निकाले हैं जिनके आधार पर यही प्रतीत होता है कि तात्कालिक लाभ जितनी जल्दी एवं जिस भी प्रकार उठाता जा सके, उसे उठाते में चूकना नहीं चाहिए। लोक चिन्तन का प्रवाह प्रायः इसी दिशा में बह रहा है और उसकी प्रतिक्रिया अनेकानेक अनर्थों के रूप में सामने आ रही है। हर अपराध कर्मी अपने कृत्यों के पक्ष में इतनी दलीलें और साक्षियां प्रस्तुत करता है कि साधारण सोच वाले को यही ठीक लगता है कि तत्काल लाभ को प्रधानता देने वाला बुद्धिपरक प्रतिपादन ही सही है। भ्रान्तियाँ इसी आधार पर पनपती हैं। अवांछनियताएं इसी रीति से बन पड़ती है फलतः व्यक्तिगत रूप में असंतोष भरी अशाँति की बाढ़ आती है। सामूहिक जीवन में इस निर्धारण के आधार पर चित्र-विचित्र स्तर के अनाचार बन पड़ते हैं। भ्रष्ट चिन्तन का परिणाम दुष्ट आचरण के रूप में ही परिलक्षित होता है।
घड़ी क्यों बुद्धि विकल्प का पेंडुलम एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचने के उपरान्त फिर वापस लौटता है। वर्तमान सर्वव्यापी विक्षोभ से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य को क्या करना होगा? इस संदर्भ में एक ही विकल्प अब सामने हे कि बुद्धि को शिखर से लौटकर भक्ति की ओर मुड़ने के लिए विवश किया जय। भाव संवेदनाओं के साथ जुड़ी उत्कृष्टताओं का महत्व समझने और समझाने का प्रयत्न किया जाय। नीचे गिरते चलने के उपक्रम पर ब्रेक लगाया जाय और दिशा परिवर्तन कर यह प्रयास किया जाय कि उस उत्कृष्टता को फिर से उपलब्ध किया जाय जिसके साथ कि उज्ज्वल भविष्य की संरचना सुनिश्चित रूप से जुड़ी हुई है।
साधनों, प्रतिभा व बुद्धि से जुड़ी विनाशलीला देखी जा चुकी। चैन किसी को नहीं है, शान्ति किसी को नहीं है। अगले दिनों के संबंध में निश्चिन्तता किसी को नहीं है। ऐसी दशा में वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रति किसी को भी ऐसी आशा या सहानुभूति नहीं कि वे शान्ति, सुरक्षा व प्रसन्नता का माहौल बना सकेंगी। चले ही वे अगले दिनों कितनी ही बढ़ी चढ़ी सम्पदा या सुविधा के रूप में ही प्रस्तुत परिलक्षित क्यों न हो?
सच्चा आनन्द भावनाओं में है। संतोष भी, सहयोग भी। सद्भाव ही परस्पर स्नेह सौजन्य का उद्भव करते हैं। उत्कृष्टता के प्रति उभरी हुई श्रद्धा ही, भावनाओं को तरंगित करती है और उसी के सहारे ऐसा कुछ सोचते करते बन पड़ता है जिससे स्वल्प साधनों में भी असीम आनन्द अनुभव किया जा सके। न्याय और नीति तक ही सीमित न रहकर जहाँ उदारता, सेवा और आत्मीयता का उद्भव होता है, वहाँ पारस्परिक सहयोग तो सघन होता ही है, आन्तरिक उल्लास की भी कमी चली रहती।
विज्ञजनों का यही अभिमत है कि स्वल्प साधनों का सदुपयोग भी आवश्यकता पूरी करने, शान्ति और प्रगति का माहौल बनाये रहने के लिए पर्याप्त हो सकते हैं। शर्त एक ही है कि व्यक्ति भाव संवेदनाओं का महत्व समझे, उन्हें अपनाये, बढ़ाये और ऐसा वातावरण उत्पन्न करे जिससे आत्मीयता विकसित होती हो, लेने की अपेक्षा देने में आनन्द अनुभव होता हो। ऐसी भाव श्रद्धा का संवर्धन ही ऐसी सद्बुद्धि का विकास करेगा जो विश्व शान्ति का चिरस्थायी आधार बन सके। आने वाला समय निश्चित ही भक्ति युग का होगा, यह दावे से कहा जा सकता है।
Chanakya Niti: ये 3 अवगुण रोक देते हैं व्यक्ति का विकास, बुद्धि हो जाती है भ्रष्ट
Chanakya Niti: चाणक्य ने कुछ ऐसे गुणों का जिक्र किया है जो इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं और जीवन बर्बादी की राह पर चला जाता है. आइए जानते हैं कौन से हैं वो अवगुण.
By: ABP Live | Updated at : 06 Aug 2022 10:59 PM (IST)
चाणक्य नीति: 3 अवगुण रोक देते हैं व्यक्ति का विकास
Chanakya Niti: भारत के महान राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ने अपनी बुद्धि की बदौलत अलग पहचान बनाई है. चाणक्य की नीतियां युवा, बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सभी के लिए प्रेरणा स्त्रोत है. चाणक्य के अनमोल विचार आज भी लोगों का मार्गदर्शन करते हैं. जीवन को सरल और सफल बनाने के लिए क्यों बुद्धि विकल्प चाणक्य ने कई नीतियां बताई है जिनका अनुसरण कर व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है. कहते हैं व्यक्ति की बुद्धि उसे काबिल और नाकाबिल बनाती है. चाणक्य ने कुछ ऐसे गुणों का जिक्र किया है जो इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं और जीवन बर्बादी की राह पर चला जाता है. आइए जानते हैं कौन से हैं वो अवगुण.
अहंकार
अहंकार में व्यक्ति को पतन के रास्ते पर ले जाता है. घमंडी इंसान खुद को सर्वोपरि समझता है. जब व्यक्ति में अहंकार का भाव आ जाता है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है. घमंड में चूर व्यक्ति सही गलत का आंकलन नहीं कर पाता और खुद का नुकसान कर बैठता है. अभिमान व्यक्ति को समाज से अलग कर देता है क्योंकि घमंडी लोगों के साथ कोई रहना पसंद नहीं करता. चाणक्य कहते हैं कि पद, पैसा आदि का घमंड मात्र पलभर का है. जब घमंड टूटता है तो इंसान कहीं का नहीं रहता.
लालच
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लालच व्यक्ति की बुद्धि का विकास रोक देता है. किसी चीज को पाने का मोह उसे इतना अधिक लालची बना देता है कि उसके सोचने की क्षमता क्षीर्ण हो जाती है. लालची इंसान सामने वाले का फायदा उठाने के लिए हर दम मौके की तलाश में रहता है. लोभ के जाल में फंसा व्यक्ति अच्छे बुरे की समझ नहीं कर पाता. लालच का त्याग करने में ही भलाई है वरना सफलता कभी नहीं मिलेगी.
काम
काम-वासना में लिप्त रहने वाला व्यक्ति कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता. ये एक ऐसा अवगुण है अगर व्यक्ति पर हावी हो जाए तो उसकी बुद्धि के साथ शरीर का भी नाश हो जाता है. वासना के मोह में व्यक्ति की सोचने समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है.
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Published at : 07 Aug 2022 06:35 AM (IST) Tags: chanakya niti हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Lifestyle News in Hindi
क्या बुद्धि दांतों को हटाने की आवश्यकता है?
बुद्धि दांत, या तीसरे मोलर्स, मुंह में विकसित करने के लिए अंतिम दांत हैं, आमतौर पर हमारे देर से किशोरावस्था या जल्दी बिसवां दशा में। 4 बुद्धि के दांत आपके मुंह के पिछले दांत हैं- ऊपर और नीचे। हर कोई उन्हें नहीं है और अगर वे अन्य दांत भीड़ नहीं है, वे रह सकते हैं और भोजन चबाने के लिए अन्य मोलर्स की क्यों बुद्धि विकल्प तरह कार्य करते हैं।
दर्द और संक्रमण
अक्सर बार, ज्ञान दांत जबड़े की हड्डी में फंस जाते हैं और गम ऊतक के माध्यम से टूट नहीं है। कभी-कभी बुद्धि दांत टेढ़े होते हैं और गुहा या मसूड़ों की बीमारी का कारण बनते हैं। यदि बुद्धि दांत टेढ़े हैं, अन्य दांतों द्वारा अवरुद्ध या शीर्ष पर मसूड़ों के ऊतकों का एक पल्ला है, पट्टिका और भोजन दांत के आसपास प्रवेश कर सकते हैं और गुहा, मसूड़ों की बीमारी या ज्ञान दांत संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
एक्स-रे यह देखने के लिए लिया जाता है कि क्या आपके पास बुद्धि के दांत हैं और उन्हें आपके जबड़े की हड्डी में कैसे रखा जाता है।
क्या बुद्धि दांतों को हटाना होगा?
कई मामलों में, यह एक अच्छा विचार है कि फंसे हुए ज्ञान के दांत निकाले जाएं। दांत के स्थान के आधार पर, दांत बाहर ले अपने दंत चिकित्सक के कार्यालय में या एक मौखिक सर्जन के कार्यालय में किया जा सकता है ।
तीसरे मोलर का कोणीय, बोनी प्रभाव
तीसरे मोलर का सॉफ्ट टिश्यू इम्पैक्टेशन।
एक चीरा बनाया जाता है और ओवरलीटिंग मुलायम ऊतक और हड्डी को हटा दिया जाता है, प्रभावित दांत के मुकुट को उजागर करता है।
दांत को पूरे या शल्य चिकित्सा से बड़े टुकड़ों में काटा जाता है, जिसे अलग से हटाया जा सकता है यदि पूरे दांत को एक बार में नहीं हटाया जा सकता है। साइट टांके के साथ बंद कर दिया है।
एक तेजी से वसूली के लिए सुझाव:
- सूजन के लिए गाल पर बर्फ पैक का उपयोग करें, 30 मिनट के लिए पैक पर डाल और इसे 30 मिनट के लिए बंद छोड़
- रक्तस्राव को रोकने के लिए साफ धुंध पर काटना
- शीतल खाद्य पदार्थ खाएं और अतिरिक्त तरल पदार्थ पीएं
- निविदा क्षेत्रों में कठिन या कुरकुरे खाद्य पदार्थों को क्यों बुद्धि विकल्प न चबाएं
- सर्जरी के बाद दिन ध्यान से ब्रश
- किसी भी दवा अपने दंत चिकित्सक की सिफारिश लेने के लिए निर्देशों का पालन करें
- पीने के तिनके का उपयोग न करें क्योंकि सक्शन दांत सॉकेट में रक्त का थक्का उखाड़ सकता है
- गर्म तरल पदार्थ न पीएं
- आपका दंत चिकित्सक आपको माउथवॉश का उपयोग करने के लिए बता सकता है
यदि आपको अधिक रक्तस्राव, सूजन, तेज दर्द या बुखार है तो तुरंत अपने दंत चिकित्सक या डॉक्टर को बुलाएं। यह कई हफ्तों के लिए महीनों के लिए मुंह पूरी तरह से चंगा करने के बाद ज्ञान दांत हटा दिया गया है ले जाएगा
Kois केंद्र दंत चिकित्सकों सबसे अद्यतित अनुसंधान और रोगियों के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने के साथ प्रशिक्षित किया जाता है पहले । अपने क्षेत्र में एक खोजें - पूर्व छात्रों को देखो
अभ्यास क्यों करें
ऐसे प्रश्न कभी सामने आते हैं क्या हमारे? नहीं ना? और यदि आते भी होंगे तो हम क्या कह सकते हैं! यही न, कि यह तो आवश्यक हैं, सुगठित जीवन यापन के लिए। इनमे से कुछ तो शरीर के लिए, और कुछ थोड़ा मन के लिए। किन्तु मानव का अर्थ केवल शरीर और मन नहीं हैं।
शरीर के लिए तो बहुत कुछ किया जाता है- समय, शक्ति, पैसा आदि खर्च होता है शरीर के लिए ही अधिकतर! अर्थात शरीर एक साधन होने के कारण उस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता तो है हि, परंतु शरीर के अतिरिक्त भी है मन और बुद्धि। अभ्यास का अर्थ है- बुद्धि का व्यायाम!
परमेश्वर द्वारा हमें बुद्धि का अमूल्य तोहफा दिया गया है- उसे हम सहर्ष स्वीकार कर उसका विकास करें , उपयोग करें और परमेश्वर द्वारा दिया गया यह धन उसे ही अर्पण करें। What we are is god’s gift, what we become is our gift to God अभ्यास का यह एक व्यापक अर्थ है।
परमेश्वर जो हमें देता है, उसे हम क्या देते हैं? केवल परीक्षा उत्तीर्ण करना ये तो अभ्यास का अति सामान्य अर्थ अथवा उद्देश्य हो सकता है, परंतु यह तो प्रथम पायदान है।
अभ्यास का इससे अधिक व्यापक, गहन, उदात्त उद्देश्य है, जो इस बात को समझ लेगा उसके लिए अभ्यास एक प्रति दिन उत्सव जैसा होगा। वाचन और अभ्यास ना करना एक मानसिक आत्महत्या होगी।
डॉ. बिल डूरांट एक जागतिक प्रख्यात, अमेरिकन इतिहासकार हैं। उनके अनुसार- Sixty years ago I knew everything. Now I knew nothing. Education is progressive discovery of our ignorance. कितनी अर्थपूर्ण बात है यह!
मुझे सबकुछ समझ में आया ऐसा जो समझता है उसके समक्ष प्रश्न यह उठता है कि अब और अभ्यास किसलिए? इसके विपरित जिसे ऐसा अनुभव होता हो कि मुझे अभी सब समझना ही नहीं, उसके समक्ष प्रश्न रहता है- अभ्यास नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? अपनी बुद्धिमत्ता स्नायु समान है, उपयोग ना करने पर ढीली पड़ जाती है। दो ही विकल्प है- उपयोग करो अथवा खो। use it or lose it. बुद्धिमत्ता का वैभव हमें खो देने के लिए नहीं बल्कि सदुपयोग करने के लिए ही मिला है न? तो क्यों बुद्धि विकल्प फिर अभ्यास क्यों करें ऐसा प्रश्न मन को छूना भी नहीं चाहिए। ऐसे प्रश्न को मन और घर से भी पूरी तरह से बाहर कर देना चाहिए।
कार्यशाला में विभिन्न प्रकार के खेल, कृति करने को कहा जाता है। एक चौरस में अनेक छोटे छोटे चौरस और उनमें और छोटे छोटे चौरस होते हैं। उन्हें गिनने को कहा जाता है। जितने बार गिनती करते हैं हर बार संख्या बढ़ती हुई प्रतीत होती है। वास्तव में तो चौरस की संख्या तो उतनी ही रहेगी, न घटेगी और ना ही बढ़ेगी। और चौरस भी अपनी जगह यथावत रहता है।
ध्येय वस्तु के स्थान पर मन का स्थिरीकरण करना ही अभ्यास है। प्रथम दृष्टिक्षेप में केवल ऊपरी तौर पर देखना (अंग्रेजी में कर्सरी लुक) अर्थात गहन ज्ञान ना होना। किसी विषय का मन क्यों बुद्धि विकल्प में दृढ होने के लिए उसे बार बार प्रतिपादन करना ही अभ्यास है।
शिक्षक, आचार्य, गुरुजन जो बताते हैं उसे ध्यान से सुनना (श्रवण करना), श्रवण किए हुए का चिंतन-मनन करना, और तन्मयता से उसकी अनुभूति करना इस पूरी प्रक्रिया को अभ्यास/अध्ययन कहते हैं।
सुनने का, बोलने का, कुछ क्रिया करने का, देखने-परखने का भी अभ्यास करना पड़ता है।
एक प्रसंग- मैं बैंक में कुछ कार्यवश काउंटर क्यों बुद्धि विकल्प के निकट खड़ा था, काउंटर के उस पार कुछ युवा कर्मचारी काम करते हुए आपस में बात भी कर रहे थे। तभी एक युवती ने युवा कर्मचारी से किसी काम के बारे क्यों बुद्धि विकल्प में पूछा कि उक्त काम क्यों नहीं हुआ?
इस पर वह युवा कर्मचारी बोला-‘मुझे यह कार्य नहीं’ आता, तब युवती ने कहा- ‘तो फिर सीखते क्यों नहीं?’ इस पर उस तरुण कर्मचारी का उत्तर सुनकर मैं दंग रह गया। उस तरुण कर्मचारी का उत्तर था- ‘ऐसे अगर हर काम सीखने लगा तो मुझे और अधिक कार्यभार सौंप दिया जाएगा न!’ उस संवाद से मुझे हिब्रू भाषा का एक सुंदर विचार नजर के समक्ष आया- I ask for no lighter burden but for broader shoulder.
मुझे काम ना दें ऐसा मैं नहीं चाहता, मैं चाहता हूँ मजबूत कंधे!
अभ्यास को टालमटोल करें अथवा अभ्यास को एक अच्छा अवसर समझे; अभ्यास को झंझट समझे अथवा वरदान यह अपनी अपनी सोच पर निर्भर करता है। अतः यह स्वयं तय करें!
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