विदेशी मुद्रा भंडार 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.9 अरब डॉलर पर

व्यापारिक विदेशी मुद्रा

नेपाल वाहनों और शराब उत्पादों के आयात पर हटेगा प्रतिबंध

काठमांडू, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। नेपाल की कैबिनेट ने 16 दिसंबर से कुछ वाहनों और शराब उत्पादों और महंगे मोबाइल सेट के आयात पर आठ महीने से लगे प्रतिबंध को हटाने का फैसला किया है। एक कैबिनेट मंत्री ने यह जानकारी दी।

नेपाल वाहनों और शराब उत्पादों के आयात पर हटेगा प्रतिबंध

काठमांडू, 7 दिसंबर (आईएएनएस)। नेपाल की कैबिनेट ने 16 दिसंबर से कुछ वाहनों और शराब उत्पादों और महंगे मोबाइल सेट के आयात पर आठ महीने से लगे प्रतिबंध को हटाने का फैसला किया है। एक कैबिनेट मंत्री ने यह जानकारी दी।

युवा और खेल मंत्री महेश्वर जंग गहतराज ने मंगलवार को शिन्हुआ को बताया कि, प्रतिबंध हटाने का फैसला कैबिनेट द्वारा किया गया था।

समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल अप्रैल में पहली बार प्रतिबंध बढ़ते आयात के कारण घटते विदेशी मुद्रा भंडार, तम्बाकू, हीरे के साथ-साथ कुछ वाहनों, शराब उत्पादों और महंगे स्मार्टफोन सहित विलासिता की वस्तुओं को लक्षित करने के बीच लगाया गया था।

अगस्त के अंत में, सरकार ने 13 अक्टूबर तक केवल लक्षित वाहनों, महंगे मोबाइल सेट और शराब उत्पादों के प्रवेश पर रोक लगाते हुए प्रतिबंध में ढील दी और प्रतिबंध को बाद में दिसंबर के मध्य तक बढ़ा दिया गया।

नेपाल में व्यापारिक समुदाय व्यापार घाटे और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट को रोकने में इस कदम की विफलता का हवाला देते हुए आयात प्रतिबंध को समाप्त करने की मांग कर रहा है।

नेपाली सरकार पर भी अपना राजस्व बढ़ाने का दबाव है क्योंकि प्रतिबंध का मतलब कम शुल्क है।

सीमा शुल्क विभाग के अनुसार, जुलाई के मध्य से शुरू होने वाले चालू वित्त वर्ष 2022-23 के पहले चार महीनों के दौरान नेपाल का कुल आयात 18 प्रतिशत घटकर 532.69 अरब नेपाली रुपये (लगभग 4 अरब डॉलर) रह गया।

जयशंकर-बेयरबॉक के बीच आज होगी अहम वार्ता, इन मुद्दों पर चर्चा संभव

नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर (External Affairs Minister S Jaishankar) और जर्मनी (Germany) की उनकी समकक्ष एनालेना बेयरबॉक (anlena barebock) के बीच सोमवार को होने वाली वार्ता में चीन के साथ भारत के संबंध (India’s relations with China) और यूक्रेन पर रूस के युद्ध (Russia’s war on Ukraine) के नतीजों पर चर्चा होने की संभावना है। बेयरबॉक दो दिवसीय यात्रा पर सोमवार को दिल्ली पहुंच रही हैं।

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जर्मनी के दूतावास द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, बेयरबॉक ऐसे वक्त में भारत की यात्रा कर रही हैं, जब यूक्रेन पर रूस के युद्ध के वैश्विक नतीजे सामने आ रहे हैं। बर्लिन में जर्मनी के संघीय विदेश कार्यालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि दो दिवसीय यात्रा के दौरान तेल, कोयला और गैस के अलावा ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग पर भी बातचीत की जाएगी।

दूतावास ने कहा, भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर के साथ बेयरबॉक की वार्ता में चीन के साथ भारत के संबंधों के साथ ही यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध और उसके नतीजों पर चर्चा किए जाने की संभावना है, उदाहरण के लिए ऊर्जा क्षेत्र में।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर जानिये ये बड़े अपडेट, स्वर्ण भंडार में गिरावट

विदेशी मुद्रा भंडार 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.9 अरब डॉलर पर

विदेशी मुद्रा भंडार 1.09 अरब डॉलर घटकर 529.9 अरब डॉलर पर

मुंबई: विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति में जबरदस्त बढ़ोतरी होने की बदौलत देश का विदेशी मुद्रा भंडार 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 2.9 अरब डॉलर बढ़कर 550.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया

जबकि इसके पिछले सप्ताह यह 2.54 अरब डॉलर की बढ़त लेकर 547.3 अरब डॉलर पर रहा था। रिजर्व बैंक की ओर से जारी साप्ताहिक आंकड़े के अनुसार, 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार के सबसे बड़े घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति तीन अरब डॉलर की बढ़ोतरी लेकर 487.3 अरब डॉलर हो गयी।

हालांकि इस अवधि में स्वर्ण भंडार में 7.3 करोड़ डॉलर की गिरावट आई और यह कम होकर 39.9 अरब डॉलर रह गया।(वार्ता)

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व्यापार घाटा कहीं देश की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ न दे!

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अगर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की मानें तो अर्थव्यवस्था में सब अच्छा ही अछा है। हमारी अर्थव्यवस्था के दुनिया में पांचवें स्थान पर होने के उत्साह में वे काफी कुछ दावे करने से नहीं चूकतीं। प्रत्यक्ष करों की वसूली में तीस फीसदी का उछाल और जीएसटी की वसूली के नित बढ़ते आँकड़े अर्थव्यवस्था का हाल ठीक होने के दावे को मजबूत करते हैं।

अब इसमें करखनिया सामानों का उत्पादन गिरने, महंगाई के चलते बिक्री कम होने तथा महंगाई और बेरोजगारी का हिसाब निश्चित रूप से शामिल नहीं है। छोटे और सूक्ष्म उद्योग धंधों की हालत और खराब हुई है जिसने रोजगार के परिदृश्य को ज्यादा खराब किया है। और इसमें अगर विदेश व्यापार की ताजा स्थिति और बढ़ते घाटे को जोड़ लिया जाए तो साफ लगेगा कि वित्त मंत्री सिर्फ अर्थव्यवस्था का उतना हिस्सा ही देखना और दिखाना चाहती हैं जो गुलाबी है।

बाजार में निवेश का आना कम होने और डालर की महंगाई को भी जोड़ लें तो हालत चिंता जनक लगने लगती है। यह सही है कि अभी वैश्विक मंडी की आहट भी सुनाई दे रही है और अधिकांश बड़े देशों की हालत भी खराब है लेकिन यह कहने से बेरोजगार लोगों या महंगाई से त्रस्त गृहणियों के जख्मों पर मरहम नहीं लगेगा।

वित्त मंत्री और सरकार के लोग चाहे जो दावे करें विदेश व्यापार का बढ़ता आकार और उससे भी ज्यादा तेजी से व्यापारिक विदेशी मुद्रा बढ़ता घाटा अर्थशास्त्र के सारे जानकारों को चिंतित किए हुए है। लगातार हर महीने आने वाले आँकड़े इन दोनों प्रवृत्तियों में वृद्धि ही दिखा रहे हैं जबकि अगस्त के आँकड़े बताते हैं कि घाटा दस साल का रिकार्ड तोड़ चुका है।

अगस्त में यह 29 अरब डालर को छू चुका है और घाटे की प्रवृत्ति में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। दुनिया भर में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में आई नरमी बदलाव ला सकती थी लेकिन डालर के अस्सी रुपए तक पहुँचने से यह लाभ भी समाप्त सा हों रहा है।

इलेक्ट्रानिक सामानों के निर्यात में कुछ वृद्धि दिख रही है तो जेवरात और रत्नों का आयात उस पर भी पानी फेर रहा है। यह भी माना जाता है कि अचानक बिजलीघरों में कोयले के अकाल ने सरकार के हाथ पाँव फुला दिए थे। इस चक्कर में विदेश से काफी कोयला मंगा लिया गया जबकि अपने यहां सबसे बड़ा कोयला भंडार है। व्यापार संतुलन बिगाड़ने में इसका भी हाथ है। हाल के दिनों में करोना से उबरी दुनिया में रिफाइनिंग का काम बढ़ा था जिसका लाभ हमें भी मिला था। अब खबर आ रही है कि इस काम में भी गिरावट है और यह दस फीसदी तक है।

जाहिर है हमारा विदेश व्यापार का असंतुलन बढ़ ही सकता है, उसके सुधार के लक्षण नहीं हैं। यह अंदेशा अभी भी जारी यूक्रेन युद्ध और ताइवान पर तनातनी से बढ़ा ही है। पर निश्चित रूप से सबसे बड़ा प्रभाव कोरोना का ही रहा। जिसके चलते दुनिया भर में मांग कम हुई है। यूरोप और अमेरिका इस बार जिस तरह की परेशानी में हैं, और अमेरिकी फेडरल रिजर्व जिस तेजी से अपने रेट बढ़ा रहा है उसमें दुनिया भर के पूंजी बाजारों से पैसा गायब होने लगा है।

हमारा केन्द्रीय बैंक भी रेट बढ़ा रहा है। लेकिन सरकार एक सीमा से ज्यादा रेट बढ़ाने के पक्ष में नहीं है क्योंकि इससे महंगाई बढ़ने लगती है। पर असली दिक्कत हमारे माल की मांग काम होने से आई है और दुनिया के बाजारों के जल्दी सुधारने की उम्मीद नहीं की जा रही है। सामान महंगा होने और बेकारी बढ़ने के असर अपने बाजार पर भी है और जाहिर तौर से ये कारण करखनिया उत्पादन के गिरने के हैं।

अंतरराष्ट्रीय एजेंसी रायटर्स के एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि लगातार तीन तिहाई के आंकड़ों की दिशा, खाद्यान्न की कीमतों में वैश्विक उछाल और गिरते रुपए के चलते भारतीय व्यापार घाटा न सिर्फ एक दशक में सबसे ऊपर जाने व्यापारिक विदेशी मुद्रा वाला है बल्कि यह अर्थव्यवस्था के लिए संकट भी बनेगा। ये चीजें निवेशकों का भरोसा गिरा रही हैं। बाजार से पूंजी गायब दिखने की यह एक बड़ी वजह है।

दुनिया के 18 बड़े अर्थशास्त्रियों से पूछे सवाल पर आधारित यह सर्वेक्षण बताता है कि चालू खाते का घाटा आने वाले महीनों में सकल घरेलू उत्पादन, जीडीपी के पाँच फीसदी तक पहुँच सकता है। पिछली तिमाही अर्थात अप्रैल-जून में यह जीडीपी के 3.6 फीसदी तक चला गया था। जैसा पहले बताया जा चुका है अकेले अगस्त महीने का घाटा 29 अरब डालर का था। उससे पहले जुलाई का घाटा तीस अरब डालर को छू गया था। अगर यह रफ्तार रही तो इन अर्थशास्त्रियों का अनुमान भी कम पड जाएगा। अगर हम जनवरी-मार्च के मात्र 13.4 अरब डालर पर नजर डालें तो अगस्त तक का रिकार्ड डरावना लगने लगेगा।

इस घाटे की भरपाई करनी ही होती है। इस काम में रिजर्व बैंक की सांस फूल रही है। डालर के मुकाबले गिरते रुपए को संभालने में भी उसे काफी सारा पैसा उतारना पड़ता है। इन दोनों कामों में कीमती विदेशी मुद्रा खर्च हों रही है और विदेशी मुद्रा का भंडार तेजी से नीचे आ रहा है। ये चीजें भी रुपए पर दबाव बढ़ा रही हैं और कमाई की गुंजाइश काम हुई है। सामान्य स्थिति में मुद्रा की कीमत गिरने का एक लाभ यह होता है कि आपके विदेश व्यापार में वृद्धि होती है। आपका सामान सस्ता होता है तो मांग बढ़ती है।

अभी दुनिया में, खासकर हमारा सामान (तैयार पोशाक, जेम-ज्वेलरी और इंजीनियरिंग का सामान) मांग न होने के चलते बिक ही नहीं रहा है। इलेक्ट्रानिक सामान बिक भी रहे हैं तो इंजीनियरिंग के सामान की बिक्री में अगस्त में ही पिछले साल की तुलना में 78 फीसदी की गिरावट आ गई है। उधर हमारा तेल का आयात बढ़ता ही जा रहा यही। पिछले साल की तुलना में बीते अगस्त में हमने 37 फीसदी ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों का आयात किया। आयात निर्यात बढ़ाने घटाने के और आँकड़े भी इसी दिशा को बताते हैं लेकिन सबसे बड़ा सच तो व्यापार घाटे के बेहिसाब बढ़ाने से दिखता है। सरकार सोई नहीं होगी लेकिन सारी दुनिया के आर्थिक हालात पर उसका वश चलता हों ऐसा भी नहीं है।

केंद्र सरकार महंगाई पर अंकुश लगाने में पूरी तरह नाकाम: कांग्रेस

केंद्र सरकार महंगाई पर अंकुश लगाने में पूरी तरह नाकाम: कांग्रेस

रायपुर,7 दिसंबर । आरबीआई के रेपो रेट बढ़ाए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के चलते आरबीआई ने बुधवार को पुनः रेपो रेट में 0.35 फीसदी की बढ़ोतरी का ऐलान किया है। विगत आठ महीनों के भीतर पांचवीं बार रेपो रेट बढ़ाना यह प्रमाणित करता है कि केंद्र सरकार महंगाई पर अंकुश लगाने में पूरी तरह नाकाम हो चुकी है।

इसी वर्ष 4 मई, 8 जून, 5 अगस्त, 30 सितंबर और अब बुधवार को 7 दिसंबर को रेपो रेट फिर से बढ़ाने का सीधा असर आम जनता पर पड़ना निश्चित है। इससे पहले आरबीआई चार बार की मॉनिटरी पॉलिसी बैठकों में पहले ही 1.90 फीसदी रेपो रेट को बढ़ा चुकी है। होम लोन, आटो लोन, पर्सनल लोन सहित सभी तरह के लोन में ब्याज और ईएमआई महंगे हो जाएंगे। केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों की वज़ह से महंगाई, बेरोजगारी और आय में कमी की मार झेल रहे आम जनता पर यह एक और अत्याचार है।

सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि मोदी राज में गलत आर्थिक नीतियों के चलते व्यापार संतुलन बिगड़ा है, विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रही है, विदेशी कर्ज 490 अरब डालर से बढ़कर 615 अरब डालर से अधिक पहुंच गया है, बेरोजगारी 45 वर्षों के शिखर पर है। सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक 2014 में 3.4 प्रतिशत थी जो वर्तमान में ऐतिहासिक रूप से सर्वाधिक 8.2 प्रतिशत है। देश में अभी लगभग 90 करोड लोग नौकरी के योग्य हैं, जिनमें से 45 करोड़ों लोगों ने केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के चलते हताशा में नौकरी की तलाश ही छोड़ दी है। क्रूड आयल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2014 की तुलना में काफी कम है। विगत दो महीने में ही क्रूड ऑयल 30 प्रतिशत की कमी आयी है, लेकिन विगत 8 वर्षों में पेट्रोल की व्यापारिक विदेशी मुद्रा कीमत लगभग 30 रुपए और डीजल की कीमत 40 रुपये प्रति लीटर अधिक है, जो केंद्र सरकार के मुनाफाखोरी का प्रमाण है।

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