बात पते की

आर्थिक सुधार जो भारत को बना सकते हैं मैन्युफैक्चरिंग हब

2020 की जून तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 24% के अनुबंध के साथ, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत को बड़े आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है, ताकि चीजों को व्यवस्थित किया जा सके और विकास और विकास की एक नई लहर पैदा की जा सके, जो नए रास्ते पैदा कर सके। रोज़गार। जैसा कि भारत दुनिया का अगला विनिर्माण केंद्र बनने का लक्ष्य रखता है, कोरोनावायरस महामारी के बाद की उथल-पुथल को नियंत्रित करने एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज और विदेशी निवेशकों के लिए चीजों को आसान बनाने के लिए बड़े नीतिगत बदलाव करने होंगे।

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भारतीय जूट उद्योग

भारत एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज में जूट का प्रथम कारखाना सन 1859 में स्कॉटलैंड के एक व्यापारी जार्ज ऑकलैंड ने बंगाल में श्रीरामपुर के निकट स्थापित किया और इन कारखानों की संख्या 1939 तक बढ़कर 105 हो गई। देश के विभाजन से यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ। जूट के 112 कारखानों में से 102 कारखाने ही भारत के हिस्से में आये।

भारतीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 19वीं शताब्दी तक यह उद्योग कुटी एवं लघु उद्योगों के रूप में विकसित था एवं विभाजन से पूर्व जूट उद्योग के मामले में भारत का एकाधिकार था। विशेष रूप से कच्चा जूट भारत से स्कॉटलैंड भेजा जाता था। जहाँ से टाट-बोरियाँ बनाकर फिर विश्व के विभिन्न देशों में भेजी जाती थीं, जोकि विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत थी। यह निर्यात व्यापार जूट उद्योग का जीवन रक्त था। दुनिया के प्रायः सभी देशों में जूट निर्मित उत्पादों की माँग हमेशा बनी रहती है। अतः आज भी भारत में जूट को ‘सोने का रेशा’ कहा जाता है।

नियोजित विकास

विभिन्न पँचवर्षीय योजनाओं में देश में जूट के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि की प्रवृत्ति रही है। पहली योजना के अन्तिम वर्ष एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज में भारत में जूट का उत्पादन 42 लाख गाँठे था, जो 1996-97 में बढ़कर एक करोड़ गाँठें हो गया। जूट का उत्पादन एवं जूट से निर्मित उत्पादों को तालिका-1 में दर्शाया गया हैै।

तालिका - 1

कच्चे जूट का उत्पादन (लाख गाँठें)

जूट निर्मित माल (लाख टन)

विदेशी भाषाओं की बढ़ती मांग और रुझान

Shahram Warsi

राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को और अधिक अंतरराष्ट्रीय महत्व के साथ, विदेशी भाषाओं की मांग और आवश्यकता मे वृद्धि हो गई है। अपनी मूल भाषा के अलावा किसी अन्य भाषा में प्रमुख बनने की इच्छा वैश्विक स्तर पर विस्तार कर रही है, जहां महत्वाकांक्षी छात्र विभिन्न विदेशी पाठ्यक्रमों का चयन कर रहे हैं। इस इच्छा के परिणामस्वरूप आज दुनिया में कुल 3 मिलियन विदेशी मुद्रा छात्र हैं, जो एक आंकड़ा 2020 तक 2.6 मिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है।

वास्तव में, स्नातक के लिए विदेशी भाषा में प्रवीणता को कम करके आंका नहीं जा सकता है, क्योंकि अर्थशास्त्री इंटेलिजेंस यूनिट के में कहा गया है, "घरेलू बाजार में नौकरियों के लिए भर्ती करते समय भी, सभी कंपनियों में से लगभग आधे उम्मीदवारों को धाराप्रवाह होना चाहिए। विदेशी भाषा के रूप में उनका मानना ​​है कि बहुभाषी क्षमता सफलता की कुंजी है।"

सरोगेसी पर बिल स्वागत योग्य

आखिरकार सरकार ने सरोगेसी (किराये पर कोख लेने) के बढ़ते कारोबार को विनियमित करने की पहल की है। इसके लिए तैयार हुए विधेयक का मूल भाव सही दिशा में है। इसमें ऐसे अनेक प्रावधान हैं एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज जिनका वे तमाम लोग स्वागत करेंगे, जो हर चीज को बिजनेस बना देने की बढ़ती प्रवृत्ति से परेशान हैं। लेकिन इस कारोबार से भारत में बड़े स्वार्थ जुड़ चुके हैं, इसलिए इस आशंका के लिए आधार है कि उदारता और स्वतंत्रता के नाम पर बिल के कुछ प्रावधानों के खिलाफ शोर मचाया जाएगा।

सरोगेसी को लेकर ऐसी दलीलें पहले से दी जा रही हैं कि सख्त कानून बनने पर सरोगेसी के व्यापार का केंद्र थाईलैंड जैसे देशों की ओर खिसक जाएगा, जिससे भारत को विदेशी मुद्रा का बड़ा नुकसान होगा। कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज के एक अध्ययन के मुताबिक भारत एक सफल विदेशी मुद्रा व्यापारी बनने का राज में यह कारोबार 2.3 अरब डॉलर का हो चुका है। लेकिन इस कारोबार की भारी कीमत वंचित तबकों की महिलाओं को चुकानी पड़ रही है, जिनके संरक्षण का कोई वैधानिक उपाय अभी नहीं है।

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