वै​श्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल होने की प्रतीक्षा

जेपी मॉर्गन चेज ऐंड कंपनी द्वारा भारत के सरकारी बॉन्ड बाजार को अपने मानक सूचकांक में शामिल न करने की खबर के बाद भारत सरकार और रिजर्व बैंक की तुलना व्लादीमिर और एस्ट्रागॉन से होना स्वाभाविक है जो गॉडॉट की अंतहीन प्रतीक्षा करते रहे। इस मामले में गॉडॉट है भारत को वै​श्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल किया जाना।

एफटीएसई रसेल लंदन स्टॉक एक्सचेंज ग्रुप की एक अनुषंगी कंपनी है जो शेयर बाजार सूचकांकों को तैयार करने, रखरखाव करने, लाइसेंस प्रदान करने और उनका विपणन करने का काम करती है। उसने यह तय किया है कि वह भारत सरकार के बॉन्ड को निगरानी में रखेगी ताकि मार्च 2023 में अगले आकलन तक उसे उभरते बाजारों के सूचकांक में शामिल करने की संभावना पर विचार किया जा सके।

भारत के सरकारी बॉन्ड बाजार का आकार एक लाख करोड़ डॉलर स कुछ अ​धिक है और यह उभरती दुनिया का सबसे बड़ा बॉन्ड बाजार है जिसे अब तक वै​श्विक सूचकांकों में स्थान नहीं मिला है। सितंबर में आई मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट में अनुमान जताया गया था कि इन्हें जेपी मॉर्गन के सरकारी बॉन्ड सूचकांक-उभरते बाजार सूचकांक में शामिल किया जाएगा। जून 2005 में पहले व्यापक वै​श्विक स्थानीय उभरते बाजार सूचकांक के रूप में शुरू जीबीआई-ईएम उभरते बाजार वाली सरकारों द्वारा जारी स्थानीय मुद्रा बॉन्ड पर नजर रखता है।

अक्टूबर 2021 में भारत को 60 फीसदी निवेशकों के समर्थन से निगरानी सूची में शामिल किया गया था। उस समय जेपी मॉर्गन ने कहा था कि भारत को बाजार पहुंच सुधारने की जरूरत है ताकि सूचकांक में शामिल हो सके। लेकिन यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को इससे बाहर किया गया और तब भारत के लिए संभावनाएं बेहतर हो गईं।

जीबीआई-ईएम सूचकांक में रूस का भार आठ फीसदी था। उसके बाहर होने के बाद चीन, इंडोने​शिया, थाईलैंड, मले​शिया, ब्राजील, मै​क्सिको और द​क्षिण अफ्रीका आदि 20 में से सात देशों का भार 10 प्रतिशत प्रत्येक है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो सात देशों का औसत भार 64 प्रतिशत है। भारत को शामिल करने से इसमें संतुलन आएगा।

माना तो यही जा रहा था कि भारत 10 फीसदी वाले क्लब में शामिल हो जाएगा। अगर ऐसा हो जाता तो भारत के सरकारी बॉन्ड बाजार में 30 अरब डॉलर की रा​शि आती। सरकारी बॉन्ड बाजार के लेनदेन का निपटान करने विदेशी मुद्रा क्लब और ट्रेडिंग उद्योग मानक वाले ​क्लियरिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों को देखें तो 8 अक्टूबर तक विदेशी निवेशकों के पास 10 अरब डॉलर मूल्य के ऐसे बॉन्ड थे।

विश्लेषक इस समावेशन के न होने के अलग-अलग कारण बताते हैं। एक कारण है उच्च कराधान। एक बार बॉन्ड के एक वर्ष के भीतर बिक जाने पर इस पर 30 फीसदी पूंजीगत लाभ कर लगता है। इसके अलावा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को ब्याज आय पर 5 फीसदी विदहो​ल्डिंग कर चुकाना होता है।

विश्लेषकों के मुताबिक निस्तारण भी एक मुद्दा हो सकता है। भारत उनका निस्तारण यूरो​क्लियर जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच के बजाय अपने यहां करना चाहता है। वै​श्विक ​निस्तारण मंच के होने से सहज निस्तारण सुनि​श्चित होता है। यूरो​क्लियर को प्रतिभूतियों के लेनदेन तथा सुर​क्षित रखरखाव में विशेषज्ञता हासिल है। एक विदेशी पोर्टफोलियो निवेश खाता स्थापित करने की मौजूदा प्रक्रिया एक अहम कारक है। जटिल केवाईसी मानकों के चलते यह प्रक्रिया काफी दुरूह है।

कुछ निवेशकों तथा अन्य बाजार अंशधारकों के साथ बातचीत से मुझे अहसास हुआ कि कराधन राह का रोड़ा नहीं है और रिजर्व बैंक के मन में भी यूरोक्लियर के निस्तारण को लेकर पूर्वग्रह नहीं हैं। बुनियादी ढांचे की बात करें तो कारोबार, निस्तारण और पारद​र्शिता के मामले में भारत अ​धिकांश विकसित बाजारों से बेहतर है। जून 2021 से रिजर्व बैंक अपने रिपोर्टिंग मानकों में सुधार कर रहा है और विदेशी निवेशकों के लिए सरकारी बॉन्ड खरीद को सहज बना रहा है।

इसके आगे 2020 में रिजर्व बैंक ने चुनिंदा बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व पर सीमा समाप्त कर दी थी। फिलहाल ऐसे 20 बॉन्ड हैं और कुल बकाया राशि 263 अरब डॉलर है। मॉर्गन स्टैनली रिपोर्ट में कहा गया है कि हर महीने 10 अरब डॉलर के नए बॉन्ड इस सूची में शामिल होंगे। इस तरह भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा बॉन्ड बाजार बन सकता है।

भारतीय बॉन्ड की मांग है और रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा क्लब और ट्रेडिंग उद्योग मानक तथा सरकार दोनों इस बात से अवगत हैं कि वै​श्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल होना निवेशकों के निर्णय को प्रभावित करेगा। को​शिश यह होगी कि एक वर्ष में ऐसा हो सके।

जब से देश के पूंजी बाजारों को विदेशी निवेशकों के लिए खोला गया है, ऋण की आवक शेयरों की तुलना में एक तिहाई रही है। कई वर्षों तक तो ऋण का प्रवाह नकारात्मक भी रहा। आ​र्थिक उदारीकरण के तुरंत बाद सितंबर 1992 में शेयर बाजारों को विदेशी निवेशकों के लिए खोल दिया गया था। ऋण बाजार में विदेशी निवेश के मानक 1995 में ​​शि​थिल किए गए और 1997 में 29 करोड़ रुपये की रा​शि आई।

2014 में जब भारत चालू खाते के घाटे से जूझ रहा था और डॉलर के मुकाबले रुपया तेजी से गिर रहा था तब रिजर्व बैंक ने जेपी मॉर्गन से इस सूचकांक में शामिल होने के बारे में बात की थी। परंतु ऐसा नहीं हो सका क्योंकि हमारे यहां परिपक्वता, निवेश के आकार और डेट उपायों को लेकर नियमन काफी कड़े हैं।

तब से तस्वीर बदल गई है। डेट बाजार में बढ़ती विदेशी पहुंच से हमारे बैंकों पर दबाव कम होगा और ऋण के रूप में देने के लिए धन की उपलब्धता बढ़ेगी। कोविड प्रभावित वर्ष 2021 में सकल शासकीय उधारी बढ़कर 13.7 लाख करोड़ रुपये (शुद्ध 11.43 लाख करोड़ रुपये) हो गई थी जो इससे पिछले वर्ष से लगभग दोगुनी थी। गत वर्ष यह घटकर 11.27 लाख करोड़ रुपये (विशुद्ध 8.63 लाख करोड़ रुपये) रह गई।

कई लोग कहते हैं कि अगर भारत अपने डेट बाजार को खोल भी दे तो विदेशी निवेशक ज्यादा उत्साहित नहीं होंगे जब तक कि प्रतिफल अमेरिकी बॉन्ड से बेहतर न हों। 10 वर्ष के भारतीय बॉन्ड और अमेरिकी बॉन्ड में 20 वर्ष की अव​धि में औसत अंतर 4.39 प्रतिशत है।

चूंकि ​विदेशी निवेशक मुद्रा जो​खिम उठाते हैं और अगर वे मुद्रा अवमूल्यन को सुर​क्षित करते हैं तो इसकी कीमत उन्हें प्रतिफल में चुकानी होती है।

निवेशकों को इस जो​खिम का प्रबंधन करने की आवश्यकता है। सरकार और रिजर्व बैंक के लिए भी जो​खिम हैं। वै​श्विक सूचकांकों में प्रवेश होने से भारतीय डेट बाजार का वै​श्विक बाजारों के साथ एकीकरण पूरा हो जाएगा। यानी विदेशी निवेशक अन्य बाजारों में अ​धिक कमाई के लिए भारतीय डेट को त्याग सकेंगे। इससे प्रतिफल पर दबाव बढ़ेगा और सरकारी उधारी की लागत बढ़ेगी।

ऐसा लगता है कि भारत जो​खिम उठाने को तैयार है। अगर वह 7-8 फीसदी की सालाना वृद्धि चाहता है तो डेट बाजार में विदेशी पूंजी प्रवाह का स्वागत करने के अलावा विकल्प नहीं है क्योंकि घरेलू बचत वृद्धि की मदद नहीं कर सकती। इंतजार लंबा हो रहा है लेकिन नि​श्चित रूप से यह वेटिंग फॉर गॉडॉट जैसा नहीं है।

विदेशी मुद्रा क्लब

एक राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा क्लब आम तौर पर पेरिस स्थित एसीआई फाइनेंशियल मार्केट्स एसोसिएशन, थोक वित्तीय बाजार पेशेवरों विदेशी मुद्रा क्लब और ट्रेडिंग उद्योग मानक के लिए एक छाता संगठन से संबद्ध है । ACI की स्थापना 1955 में की गई थी। आज ACI के पास छह महाद्वीपों के 63 राष्ट्रीय संघों में 9,000 से अधिक सदस्य हैं, जो सर्वश्रेष्ठ बाजार प्रथाओं और नैतिक आचरण का समर्थन करने के मिशन के साथ हैं।

विदेशी मुद्रा क्लब एक सामान्य शब्द है और विदेशी मुद्रा क्लब से संबंधित नहीं है, जो निजी तौर पर आयोजित, लाभ के लिए कंपनी है जो एफएक्स, स्टॉक, कमोडिटीज, ऊर्जा और संबंधित उपकरणों के लिए ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म प्रदान करता है । विदेशी मुद्रा क्लब, हालांकि, फॉरेक्स ट्रेडिंग मीटअप को शामिल कर सकते हैं, अनौपचारिक रूप से एफएक्स बाजारों को करियर के रूप में व्यापार करने में रुचि रखने वाले व्यक्तियों की बैठकें आयोजित कर सकते हैं। सोशल एग्रीगेटिंग साइट के अनुसार, मीटअप, 200,000 से अधिक व्यक्ति फॉरेक्स मीटअप के सदस्य हैं, वर्तमान में जुलाई 2018 तक 700 से अधिक मीटअप चालू हैं।

औपचारिक और अनौपचारिक विदेशी मुद्रा क्लबों की बड़ी संख्या वैश्विक विदेशी मुद्रा बाजार के आकार को दर्शाती है । एफएक्स बाजार दुनिया में सबसे बड़ा और सबसे अधिक तरल है, जिसमें यूएस डॉलर ( यूएसडी ) से जुड़े सभी ट्रेडों का 90% हिस्सा है । बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (बीआईएस) के आंकड़ों के मुताबिक, वायदा बाजार और वैश्विक इक्विटी बाजार की तुलना में बाजार कई गुना बड़ा है ।

विदेशी मुद्रा क्लब और ट्रेडिंग उद्योग मानक

सभी एसीआई सदस्य, और इस प्रकार एक विदेशी मुद्रा क्लब के सभी सदस्यों को हाल ही में गठित एफएक्स ग्लोबल कोड में निहित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। कोड ने दिसंबर 2017 में राष्ट्रीय आचार संहिता को बदल दिया और एफएक्स, ग्लोबल फॉरेन एक्सचेंज कमेटी द्वारा 2017 में गठित एक संगठन द्वारा पारदर्शी वैश्विक एफएक्स बाजार का समर्थन करने के लिए रखा गया है। कोड में विदेशी मुद्रा बाजार में अच्छे अभ्यास के वैश्विक सिद्धांत शामिल हैं और थोक विदेशी मुद्रा बाजार की अखंडता और प्रभावी संचालन का समर्थन करने के लिए तैयार किया गया था। कोड दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों और बाजार सहभागियों के योगदान के परिणामस्वरूप आया ।

एसीआई की सदस्यता, और इस प्रकार विदेशी मुद्रा क्लब, एफएक्स और अन्य बाजार सहभागियों तक सीमित नहीं है। वे आम तौर पर केंद्रीय बैंकों, सलाहकारों, निवेश बैंकों, परिसंपत्ति प्रबंधकों, हेज फंडों, वाणिज्यिक बैंकों, नियामकों और शिक्षाविदों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हैं । एफएक्स बाजारों से संबंधित पेशेवरों के ऐसे विविध समूह को शामिल करके, फॉरेक्स क्लबों के मुख्य लक्ष्यों में से एक बाजारों के इष्टतम कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करना है।

नेटवर्किंग के अलावा, ACI से जुड़े विदेशी मुद्रा क्लबों में शैक्षिक कार्यक्रमों और एफएक्स, निश्चित आय, मुद्रा बाजार, डेरिवेटिव और रेपो-बाजारों के लिए विशेष प्रमाणपत्र हैं ।

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