अमेरिकी डॉलर की तुलना में अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा रुपया
राज एक्सप्रेस। आज पूरे विश्व में सिर्फ एक ही मामले की चर्चा है और वह है यूक्रेन और रूस के बीच चल रहा युद्ध। इस युद्ध के शुरू होने के कुछ दिन पहले से ही यूक्रेन एवं रूस के युद्ध के कारण दुनिया भर के शेयर मार्केट में भारी गिरावट देखने को मिल रही थी और रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद तो वैश्विक स्तर पर भारी दवाब देखने को मिला था, जो अभी तक देखने को मिल रहा है। क्योंकि, शेयर मार्केट (Share Market) में गिरावट का यह दौर जारी है। हालांकि, बीच में यह काफी हराभरा दिखाई भी दिया था, लेकिन अब इसका असर भारत के रूपये पर पड़ता नजर आ रहा है।
रुपये में ये सबसे बड़ी गिरावट :
बताते चलें, रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का दबाव भारतीय रूपये पर भी देखने को मिल रहा है। इसी का असर है कि, सोमवार को रुपया डॉलर की तुलना में अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। सप्ताह के पहले दिन भारतीय रुपया लगभग 77.42 डॉलर प्रति डॉलर के निचले स्तर पर आ पहुंचा। यदि इसकी तुलना अमेरिकी डॉलर से की जाए तो रुपया अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। बता दें, भारतीय मुद्रा को विदेशी बाजार में अमेरिकी मुद्रा की शक्ति और निरंतर विदेशी फंड के आउटफ्लो से तौला जाता है। इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों में उछाल से रुपया फिसल गया है।
रुपये में क्यों आई गिरावट :
स्टॉक एक्सचेंज द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, रुपये में यह गिरावट विदेशी बाजारों में अमेरिकी मुद्रा की मजबूती के चलते दर्ज की गई है। जबकि शुरुआती कारोबार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया 52 पैसे की गिरावट के साथ अपने निचले स्तर पर पंहुचा है। शुक्रवार को रुपए का हाल देखें तो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 55 पैसे की गिरावट पर 76.90 पर बंद हुआ था। ऐसा इसलिए क्योंकि, शुक्रवार को केपिटल मार्केट में शुद्ध विक्रेता थे,और उन्होंने 5,517.08 करोड़ रुपये के शेयरों की बिक्री की थी।
खुदरा अनुसंधान विश्लेषक का कहना :
एचडीएफसी सिक्योरिटीज में खुदरा अनुसंधान विश्लेषक, दिलीप परमार ने कहा, 'स्थानीय इकाइयां भी डॉलर के प्रवाह, बढ़ती मुद्रास्फीति और जोखिम-बंद भावनाओं के कारण उच्च वैश्विक दरों से अमरीकी डालर के व्यापार प्रभावित हैं। चीनी युआन में कमजोरी, जो नवंबर 2020 के बाद से अपने सबसे कमजोर स्तर पर गिर गई, उसका क्षेत्रीय मुद्राओं पर भी असर पड़ा है। इस साल अब तक विदेशी संस्थानों ने घरेलू इक्विटी और डेब्ट मार्केट से करीब 19 अरब डॉलर की निकासी की है। रुपये में नियर टर्म मूल्यह्रास कुछ और दिनों तक जारी रह सकता है और निचला पक्ष 77.70 से 78 के बीच सीमित है। अनविंडिंग की स्थिति में, रुपया 77 से 76.70 के स्तर को देख सकता है।'
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अमरीकी डालर के व्यापार
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Russia America Currency war : रूस-यूक्रेन युद्ध से बढ़ा करेंसी वार, भारत की होगी चांदी
Russia America Currency war: रूस-य़ूक्रेन युद्ध की वजह से पूरी दुनिया दो गुटों में बटंती नजर आ रही है. इससे एक तरफ तीसरे विश्व युद्ध की आशंका जन्म लेने लगी है. वहीं, इस युद्ध ने अमेरिका और रूस के बीच एक नए किस्म की जंग को भी जन्म दिया है और वह है करेंसी वॉर. दरअसल, यूक्रेन पर हमले की वजह से अमेरिका और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों ने रूस की आर्थिक रूस से कमर तोड़ दी है. रूस का विदेशी मुद्रा भंडार इस वक्त डॉलर की कमी से जूझ रहा है. ऐसे में रूस ने स्थानीय मुद्रा में व्यापार का ऐलान कर दिया है.
भारत पर मेहरबान है रूस
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दोनों देशों के साथ-साथ दुनिया भर में कई तरह के संकट खड़े हो रहे हैं. रूस पर बढ़ते प्रतिबंधों के कारण व्यापार और भुगतान का संकट बढ़ता जा रहा है. चाहे मामला क्रूड ऑयल का हो या यूरोप को गैस सप्लाई और उसके भुगतान का. ऐसे में रूस ने इसकी काट के लिए अमेरिकी डॉलर को ही बाय-बाय करना शुरू कर दिया है. तेल और गैस से भरपुर रूस ने डॉलर की जगह अब स्थानीय करेंसी में व्यापार का ऐलान कर दिया है. लिहाजा, करेंसी को लेकर आगे और भी संघर्ष बढ़ेगा. इसका अंदाजा रूसी विदेश मंत्री के हालिया भारत दौरे से लगाया जा सकता है. भारत दौरे पर आए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने शुक्रवार को कहा कि रूस ने पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए भारत और अपने दूसरे सभी साझेदारों के साथ राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार करने की दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर दिया है. लावरोव ने कहा कि भारत और चीन जैसे देशों के साथ व्यापार के लिए ऐसी व्यवस्था कई साल पहले शुरू की गई थी और पश्चिमी (डॉलर और यूरो में) भुगतान प्रणालियों को दरकिनार करने के प्रयास अब तेज किए जाएंगे. इसके साथ ही उन्होंने भारत को तेल, गैस, सैन्य साजो सामान और अन्य वस्तुओं की जरूरतों को भी पूरा करने का वादा किया है. लावरोव ने विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ व्यापक बातचीत के बाद यह टिप्पणी की.
यूरोपीय देशों को भी रूबल में भुगतान का अल्टीमेटम
रूस-यूक्रेन युद्ध में यूरोपीय देश अमेरिका के साथ है, लेकिन इन देशों में रूस बड़े पैमाने पर तेल और गैस की सप्लाई करता है. ऐसे में रूस ने अमेरिकी प्रतिबंधों को धता बताने के लिए इन देशों को 31 मार्च के बाद सभी तरह के लेनदेन रूबल में करने को कहा है. हालांकि, जर्मनी समेत कई यूरोपीय देशों ने रूबल में भुगतान करने से मना कर दिया था. इसके बाद रूस ने सख्त रुख अपनाते हुए साफ कर दिया था कि जो भी देश रूबल में भुगतान नहीं करेगा, उसकी गैस और तेल की आपूर्ति रोकने की चेतावनी दी है.
सोना बन सकता एक्सचेंज का आधार
ऐसे में सवाल पैदा होता है कि डॉलर की बादशाहत खत्म होने के बाद दो देशों के बीच कैसे होगा, क्योंकि डॉलर अभी दुनिया की एक्सचेंज मनी है. यानी एक देश जब दूसरे देश के किसी भी प्रकार का लेन देन करता है तो उसे डॉलर में भुगतान करता है. हर देश की मुद्रा की अपने देश में खरीद शक्ति के आधार पर डॉलर की कीमत यहां निर्धारित होती है. यहीं वजह है कि दुनिया भर की अलग-अलग मुद्राओं में डॉलर की कीमत अलग-अलग होती है. ऐसे में सवाल पैदा होता है कि दो देश अपनी मुद्राओं में एक दूसरे से कैसे व्यापार कर पाएंगे. दरअसल, इसी समस्या का हल निकालने के लिए दोनों देशों ने विशेषज्ञों की टीम गठित करने का ऐलान किया है. इसका एक हल सोना भी हो सकता है. सोना को एक्सचेंज मनी यानी मुद्राओं के हस्तांतरण का आधार मानकर इस समस्या का हल किया जा सकता है.
अमेरिका बौखलाया
प्रतिबंध के बाद भी रूस के साथ व्यापार जारी रखने पर अमेरिका ने गुरुवार को आगाह किया था कि रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंधों में गतिरोध पैदा करने वाले देशों को अंजाम भुगतने पड़ेंगे. साथ ही, यह भी कहा कि वह रूस से ऊर्जा एवं अन्य वस्तुओं का भारत के आयात में बढ़ोतरी को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेगा. अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (Deputy NSA) दलीप सिंह ने मास्को और बीजिंग के बीच गहरी साझेदारी का जिक्र कर भारत को डराते हुए कहा था कि भारत को यह उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि अगर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन करता है तो रूस, भारत की रक्षा करने के लिए दौड़ा चला आएगा.
भारत को होगा फायदा
डॉलर के स्थान पर स्थानीय मुद्रा में सोने को आधार मानकर व्यापार करने पर भारत को काफी फायदा होने की संभावना है. दरअसल, इस वक्त मनमाने तरीके से बाजार से डॉलर कम कर इसके मुल्य को प्रभावित कर दिया जाता है. ऐसे विदेशी भुगतान काफी महंगा हो जाता है, जिसका देश की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है. ऐसे में सोना को आधार मानकर स्थानीय मुद्रा में भुगतान होने से रुपए की कीमत में स्थिरता रह सकती है.
अमेरिकी डॉलर सोने की कीमतों को कैसे प्रभावित करता है?
सोना हमारी जानकारी के अनुसार विनिमय के सबसे पुराने साधनों में से एक है और काफी लम्बे समय तक इसने एक मुद्रा की भूमिका निभायी है। आज जहाँ अन्य मुद्राओं ने यह भूमिका ले ली है, आधुनिक दौलत और सोने का आपसी सम्बंध नहीं खोया है।
गोल्ड स्टैंडर्ड के पतन के बाद, अमेरिकी डॉलर ही सोने और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए वास्तविक मानक मूल्य निर्धारण तंत्र बन गया। फलत: दोनों एक दूसरे से बहुत करीब से जुड़े हैं। तो आइए देखते हैं अमेरिकी डॉलर सोने की कीमतों को कैसे प्रभावित करता है।
सोना एक बहुमुखी सम्पत्ति है, और इसकी कीमत दुनिया भर की सभी मुद्राओं के कुल अनुमानित मूल्य के प्रति संवेदनशील है। भय या भू-राजनैतिक उथल-पुथल के समय, सोने की कीमत में उछाल आता है, ठीक वैसे ही जैसे जुलाई में अमेरिका-चीन के बीच व्यापारिक चिंता के कारण हुआ था। हालाँकि, उसके तुरंत बाद अगस्त में, इन भू-राजनैतिक चिंताओं के बावजूद, सोना 20 महीनों में सबसे ज़्यादा नीचे गया। और इसके पीछे सबसे मुख्य कारण रहा डॉलर का तगड़ा होना। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि डॉलर के तेज़ होने के कारण या फिर अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था के कारण सोने के मूल्य में उतार-चढ़ाव हुआ हो।
डॉलर और सोने के बीच मूल्यों का सम्बंध महत्त्वपूर्ण है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सोने की कीमत को प्रभावित करने का एकमात्र कारक डॉलर ही है। चूँकि सोना खुद में ब्याज उत्पन्न नहीं करता, तो यह निवेश की मांग के लिए अन्य ब्याज वाली सम्पत्तियों से स्पर्धा करता है। जब ब्याज दर बढ़ता है, सोने की कीमत गिर जाती है क्योंकि अन्य सम्पत्तियों की मांग बढ़ जाती है। इसका कारण है कि अधिक ब्याज घटक के कारण अधिक प्रतिफल यानि रिटर्न कमाया जा सकता है।
तो अमेरिकी डॉलर सोने की कीमत को कैसे प्रभावित करता है?अमरीकी डालर के व्यापार
तो आइए सोने की कीमत पर डॉलर के प्रभाव को विस्तार से समझते हैं। अमेरिका सोने का मुख्य उत्पादक नहीं है फिर भी अमेरिकी आधिकारिक भंडारों में विश्व के समस्त सोने का एक बहुत बड़ा भाग है। और यह स्थान उसने अपने अधिकांश स्टॉक को आयात करके बनाया है।
जब डॉलर कमज़ोर होता है तो सोना आयात करना अधिक महँगा पड़ जाता है। इसलिए, कम्पनियों को उत्पाद और सेवाएँ आयात करने के लिए अधिक डॉलर का भुगतान करना पड़ता है। इसके अलावा, बुलियन के व्यवसायिओं और सरकार को भी सोने के लिए अधिक भुगतान करना पड़ रहा है। इस कारण सोने की कीमत में वृद्धि हो जाती है। इसके विपरीत, डॉलर का मजबूत होना यानि सोने की कीमत में गिरावट।
डॉलर में गिरावट अमेरिकी ऋण के विदेशी धारकों को भी प्रभावित करती है, जो बदले में, अमेरिकी कोष और वहाँ की अर्थ-व्यवस्था में उनका विश्वास कम कर देता है। अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था में डगमगाया हुआ भरोसा भी सोने की कीमत को बढ़ाने में सहायक होता है।
इसी तरह, अमेरिकी डॉलर के मूल्य में गिरावट आर्थिक मुद्रास्फीति का एक लक्षण भी हो सकता है। कागज़ी मुद्राओं को गिरावट का खतरा होते ही लोग सोने की ओर रुख करने लगते हैं। बढ़ती मुद्रास्फीति सोने की कीमतों के लिए अच्छी है। और यदि अर्थ-व्यवस्था में विश्वास ख़त्म हो जाए तो मुद्रास्फीति के बाद की सोने की कीमत सकारात्मक भी हो सकती है। इस मुद्दे पर 2008 का सब-प्राइम संकट एक मामला है। उस दौरान, ज़मीन की कीमतमें भी गिरावट आयी और ईक्विटी में भी बहुत बड़ा सेल-ऑफ हुआ, जिससे सुरक्षित आश्रय होने के कारण, सारा ध्यान सोने की तरफ केंद्रित हुआ। दरअसल, उस समय, सोने की कीमत पर संकट का सकारात्मक प्रभाव काफी स्पष्ट रहा और सोने की कीमत ने करीब $1,900 प्रति औंस की ऐतिहासिक ऊँचाई हासिल की।
सोने और रुपये-डॉलर का समीकरण
भारतीय उपभोक्ता सोने को निवेश सम्पत्ति और श्रृंगार दोनों के रूप में देखते हैं। जनसंख्या का तीन-चौथाई भाग सोना खरीदने के पीछे मुख्य कारण बताता है उसका एक सुरक्षित निवेश होना, और बाकी के लिए सोना खरीदने के फैसले के पीछे कारण है श्रृंगार।
रुपये और डॉलर का आपसी सम्बंध भारत में सोने की कीमत तय करने में एक अहम भूमिका निभाता है हालाँकि इसका सोने की वैश्विक कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यहाँ की मांग स्थानीय आपूर्ति से पूरी होना तो दूर की बात है, सिर्फ वार्षिक मांग ही आयात से पूरी की जाती है। यदि डॉलर के आगे रुपया कमज़ोर पड़ जाए, तो डॉलर की कीमत से समीकृत करने के लिए रुपये में अधिक भुगतान करना पड़ेगा।
संक्षेप में कहें तो, डॉलर की कीमत में उछाल या गिरावट सोने की वैश्विक कीमत को विपरीत दिशा में प्रभावित करता रहेगा। हालाँकि अमेरिकी डॉलर सोने की कीमत को प्रभावित करने का एकमात्र कारक नहीं है, तो भी इतिहास गवाह है कि मुद्रास्फीति के समय, जब डॉलर का प्रदर्शन कुछ ख़ास नहीं चल रहा था, उस समय निवेशक सोने का ही सहारा लेते आये हैं।
Currency: अमेरिकी डॉलर को टक्कर देने के लिए मोदी सरकार का मास्टर प्लान, बाइडेन भी भारत के इस फैसले से हैरान!
International Trade: मोदी सरकार की ओर से हाल ही में कुछ ऐसे फैसले लिए गए हैं, जो कि रुपये को आने वाले सालों में डॉलर की तुलना में मजबूत भी कर सकते हैं. वहीं पिछले दिनों डॉलर के मुकाबले रुपये में काफी गिरावट देखने को मिली है. जिसके बाद रुपये को मजबूत करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं.
Indian Currency: वर्तमान में अमेरिकी डॉलर (Dollar) की कीमत काफी महंगी है तो वहीं भारतीय रुपये की कीमत काफी सस्ती है. लेकिन अब भारतीय रुपया डॉलर से टक्कर लेने के लिए तैयार है. दरअसल, मोदी सरकार की ओर से हाल ही में कुछ ऐसे फैसले लिए गए हैं, जो कि रुपये को आने वाले सालों में डॉलर की तुलना में मजबूत भी कर सकते हैं. वहीं पिछले दिनों डॉलर के मुकाबले रुपये में काफी गिरावट देखने को मिली है. जिसके बाद रुपये को मजबूत करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं. इन्हीं कदमों में से एक मोदी सरकार की ओर से इंटरनेशनल ट्रेड (International Trade) का फैसला भी लिया गया है.
जताई सहमति
दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए अमेरिकी डॉलर को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती रही है. हालांकि अब मोदी सरकार ने इसी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर फैसला अमरीकी डालर के व्यापार लिया है और भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भारतीय रुपये में करने की संभावना तलाश रहा है. इसके लिए भारत कुछ देशों से लगातार बातचीत भी कर रहा है. इस बीच कुछ देशों ने रुपये में व्यापार करने में सहमति भी जता दी है.
श्रीलंका सहमत
वहीं भारत उन देशों को तलाश रहा है, जिनके पास डॉलर की कमी है. इस क्रम में श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भारतीय रुपये का इस्तेमाल करने पर सहमत हो गया है. सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका (CBSL) ने कहा कि वह भारतीय रुपये को श्रीलंका की विदेशी अमरीकी डालर के व्यापार मुद्रा के रूप में नामित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मंजूरी का इंतजार कर रहा है.
भारतीय रुपये का इस्तेमाल
श्रीलंकाई बैंकों ने भारतीय रुपये में ट्रेडिंग के लिए कथित रूप से स्पेशल वोस्ट्रो रुपी अकाउंट्स या SVRA नामक स्पेशल रुपी ट्रेडिंग अकाउंट खोला है. इसके साथ ही श्रीलंका और भारत के नागरिक एक दूसरे के बीच अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन के लिए अमेरिकी डॉलर की बजाय भारतीय रुपये का इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं भारत के इस कदम से अमेरिका भी हैरान है और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन जरूर भारत के इस फैसले पर नजर बनाकर रख सकते हैं.
अवसर तलाश रहा भारत
वहीं रूस भी उन देशों की लिस्ट में शामिल हो सकता है जो कि आने वाले दिनों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भारतीय रुपये का इस्तेमाल करे. इसके अलावा भारत ताजिकिस्तान, क्यूबा, लक्समबर्ग और सूडान समेत कई दूसरों देशों में भी रुपये में कारोबार करने के अवसर तलाश रहा है. वहीं रुपये के अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बनने से उम्मीद है कि भारत का व्यापार घाटा कम होगा और वैश्विक बाजार में इसे मजबूत करने में मदद मिलेगी.
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