ऊर्जा उपभोग में कमी वाले क्षेत्र

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डेली अपडेट्स

संदर्भ
भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के लिये ऊर्जा उपभोग भी बढ़ता जाता है| बिजली का उपयोग ऊर्जा दक्षता का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्तर को प्राप्त करने के लिये कम ऊर्जा का उपयोग करना अधिक कुशलता को दर्शाता है। ऊर्जा दक्षता (सकारात्मक या नकारात्मक) पर कार्य करना हरित विकास (Green औसत अभिसरण विचलन चलन Growth) को प्राप्त करने की दिशा में एक कारगर कदम औसत अभिसरण विचलन चलन माना जाता है। अत: हरित विकास और ऊर्जा दक्षता को प्राप्त करने हेतु भारत को भी इस दिशा में कुशलता से साथ आगे आने एवं इस पर कार्य करने की आवश्यकता है।

भारत की स्थिति

  • भारत के 900 जिलों में कार्यरत विनिर्माण उद्योगों से प्राप्त डाटा के आधार पर पता चला है कि पिछले कुछ दशकों में भारत ने हरित विकास में वृद्धि की है और ऊर्जा दक्षता में भी औसत अभिसरण विचलन चलन सुधार किया है।
  • भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की ऊर्जा तीव्रता (Eenergy Intensity) जो 1980 के दशक में 1.09 किलोग्राम तेल के बराबर (Kg Unit of Oil Equivalent) थी, वर्तमान में घटकर 0.66 पर आ गई है। ध्यातव्य है कि चीन की ऊर्जा तीव्रता भारत से लगभग 1.5 गुना अधिक है।
  • शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं की ज़्यादा संख्या और स्थानीय स्तर पर कुशल ऊर्जा उत्पादकों औसत अभिसरण विचलन चलन के कारण ऊर्जा की प्रति उत्पादन लागत में कमी आने औसत अभिसरण विचलन चलन के कारण शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार हुआ है।
  • बड़े विनिर्माण उद्यम अब भूमि की कम कीमत के औसत अभिसरण विचलन चलन कारण ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ स्थानांतरित हो रहे हैं। ये उद्यम ग्रामीण क्षेत्रों में ‘स्वर्णिम चतुर्भुज परिवहन राजमार्ग नेटवर्क’ जैसे परिवहन गलियारों (Transport Corridors) के साथ-साथ स्थापित हो रहे हैं ।
  • यह पाया गया है कि शहरी क्षेत्रों की औसत अभिसरण विचलन चलन तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार नहीं हो रहा है तथा समय के साथ यह विचलन बढ़ता जा रहा है। अत: इस समस्या को हल करने में हरित विकास के ड्राइवर कहे जाने वाले शहरी क्षेत्र अपनी सीमित भूमिका ही निभा पा रहे हैं।
  • ऊर्जा तीव्रता वाले उद्योग जैसे: लोहा और इस्पात, उर्वरक, पेट्रोलियम रिफाइनिंग, सीमेंट, औसत अभिसरण विचलन चलन एल्यूमीनियम और लुगदी एवं कागज इत्यादि काफी बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उपभोग करते हैं, लेकिन इन उद्योग ने ऊर्जा दक्षता की दिशा में काफी सुधार भी किये हैं।
  • इस प्रवृत्ति के लिये कई कारकों ने भूमिका निभाई है, जैसे: अधिक प्रतिस्पर्धा, 1990 से बढ़ती हुई ऊर्जा की कीमतें तथा ऊर्जा दक्षता योजनाओं को बढ़ावा देना इत्यादि शामिल है।
  • बहरहाल, कई उद्योग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर अक्षम औसत अभिसरण विचलन चलन पाए गए हैं, लेकिन इन ऊर्जा गहन उद्योगों में ऊर्जा बचत की पर्याप्त संभावनाएँ मौजूद हैं।

एडिटोरियल

संदर्भ
भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के लिये ऊर्जा उपभोग भी बढ़ता जाता है| बिजली का उपयोग ऊर्जा दक्षता का एक महत्त्वपूर्ण सूचक है। अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्तर को प्राप्त करने के लिये कम ऊर्जा का उपयोग करना अधिक कुशलता को दर्शाता है। ऊर्जा दक्षता (सकारात्मक या नकारात्मक) पर कार्य करना हरित विकास (Green Growth) को प्राप्त करने की दिशा में एक कारगर कदम माना जाता है। अत: हरित विकास और ऊर्जा दक्षता को प्राप्त करने हेतु भारत औसत अभिसरण विचलन चलन को भी इस दिशा में कुशलता से साथ आगे आने एवं इस पर कार्य करने की आवश्यकता है।

भारत की स्थिति

  • भारत के 900 जिलों में कार्यरत विनिर्माण उद्योगों से प्राप्त डाटा के आधार पर पता चला है कि पिछले कुछ दशकों में भारत ने हरित विकास में वृद्धि की है और ऊर्जा दक्षता में भी सुधार किया है।
  • भारत की औसत अभिसरण विचलन चलन सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की ऊर्जा तीव्रता (Eenergy Intensity) जो 1980 के दशक में 1.09 किलोग्राम तेल के बराबर (Kg Unit of Oil Equivalent) थी, वर्तमान में घटकर 0.66 पर आ गई है। ध्यातव्य है कि चीन की ऊर्जा तीव्रता भारत से लगभग 1.5 गुना अधिक है।
  • शहरी क्षेत्रों में उपभोक्ताओं की ज़्यादा संख्या और स्थानीय स्तर पर कुशल ऊर्जा उत्पादकों के कारण ऊर्जा की प्रति उत्पादन लागत में कमी आने के कारण शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार हुआ है।
  • बड़े विनिर्माण उद्यम अब भूमि की कम कीमत के कारण ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ स्थानांतरित हो रहे हैं। ये उद्यम ग्रामीण क्षेत्रों में ‘स्वर्णिम चतुर्भुज परिवहन राजमार्ग नेटवर्क’ जैसे परिवहन गलियारों (Transport Corridors) के साथ-साथ स्थापित हो रहे हैं ।
  • यह पाया गया है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार नहीं हो रहा है तथा समय के साथ यह विचलन बढ़ता जा रहा है। अत: इस समस्या को हल करने में हरित विकास के ड्राइवर कहे जाने वाले शहरी क्षेत्र अपनी सीमित भूमिका ही निभा पा रहे हैं।
  • ऊर्जा तीव्रता वाले उद्योग जैसे: लोहा और इस्पात, उर्वरक, पेट्रोलियम रिफाइनिंग, सीमेंट, एल्यूमीनियम और लुगदी एवं कागज इत्यादि काफी बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उपभोग करते हैं, लेकिन इन उद्योग ने ऊर्जा दक्षता की दिशा में काफी सुधार भी किये हैं।
  • इस प्रवृत्ति के लिये कई कारकों ने भूमिका निभाई है, जैसे: अधिक प्रतिस्पर्धा, 1990 से बढ़ती हुई ऊर्जा की कीमतें तथा ऊर्जा दक्षता योजनाओं को बढ़ावा देना इत्यादि शामिल है।
  • बहरहाल, कई उद्योग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर अक्षम पाए गए हैं, लेकिन इन ऊर्जा गहन उद्योगों में ऊर्जा बचत की पर्याप्त संभावनाएँ मौजूद हैं।

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