विदेशी बाजारों में गिरावट के बीच तेल-तिलहनों के भाव टूटे
नयी दिल्ली, 15 दिसंबर (भाषा) विदेशी बाजारों में गिरावट के रुख और सस्ते आयातित तेलों की वजह से दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में बृहस्पतिवार को सरसों तेल-तिलहन, सोयाबीन तेल, कच्चे पामतेल (सीपीओ), बिनौला और पामोलीन तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली, जबकि सामान्य कारोबार के बीच सोयाबीन तिलहन और मूंगफली तेल-तिलहन के भाव पूर्वस्तर पर रहे।
मलेशिया एक्सचेंज में दो प्रतिशत की गिरावट थी और शिकॉगो एक्सचेंज फिलहाल लगभग 1.75 प्रतिशत नीचे चल रहा है।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि किसान नीचे भाव में सोयाबीन दाना नहीं बेच रहे हैं। तेल मिलों को पेराई करने में सोयाबीन तेल के दाम ऊंचा बैठते हैं जिस वजह से उन्हें तेल पेराई में नुकसान है।
सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन की अधिक खपत अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर महीने में होती है। एक दिसंबर को देश में सोयाबीन का बचा हुआ स्टॉक 111.71 लाख टन था। अब जब अगले वर्ष जून, जुलाई में बिजाई होगी तो वह स्टॉक कहां खपेगा? आयातित तेल के दाम टूटे रहे तो निश्चय ही किसान कम बुवाई करने को बाध्य होंगे।
सूत्रों ने कहा कि बृहस्पतिवार को वायदा कारोबार में बिनौला तेल खली का भाव 1.5 प्रतिशत बढ़ गया। इसकी मंडियों में आवक भी 1.09 लाख गांठ से घटकर एक लाख गांठ से कम रह गई। सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों से होने वाले नुकसान को काबू में करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाते हुए, रैपसीड की तरह आयातित सस्ते सूरजमुखी और सोयाबीन तेल पर 38.5 प्रतिशत या 40 प्रतिशत से अधिक आयात शुल्क लगाना चाहिये जो तेल उद्योग, किसानों, उपभोक्ताओं को राहत देगा और विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता महंगाई को भी काबू में लायेगा।
सूत्रों ने कहा कि देश में सूरजमुखी और अन्य ‘सॉफ्ट’ (हल्के) तेल का आयात लगभग 35-40 प्रतिशत का ही होता है और अधिकांश आयात पाम पामोलीन का होता है जिसे गरीब तबके के लोग और खानपान उद्योग में इस्तेमाल किया जाता है। पामोलीन का असर देशी तेल-तिलहनों पर कोई खास नहीं है इसलिए धनी तबकों में खपत होने वाले सूरजमुखी और सोयाबीन पर आयात शुल्क अधिकतम लगाने के बारे में सोचना चाहिये। इससे कई हित एक साथ पूरे होंगे। एक तो सरकार को राजस्व की प्राप्ति होगी, दूसरा विदेशी मुद्रा खर्च की बचत होगी, किसानों के देशी तिलहन बाजार में आसानी से खप जायेंगे और वे तिलहन उत्पादन बढ़ाने को प्रेरित होंगे और आगामी सरसों की रिकॉर्ड अनुमानित उत्पादन के बाजार में खपने की चिंता खत्म हो जायेगी। इसके अलावा हमें खल और डीओसी के लिए चिंता नहीं करनी होगी।
सूत्रों ने कहा कि हमारा देश अपनी 60 प्रतिशत खाद्य तेलों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है तो ऐसे में सोयाबीन का स्टॉक जमा बचना काफी चिंताजनक है। जब देश में तिलहन उत्पादन भी बढ़ रहा हो तो आयात कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। इसका एकमात्र कारण है कि सस्ते आयातित तेल के कारण हमारे माल बाजार में गैर-प्रतिस्पधी हो रहे हैं। यह कोई अच्छा संकेत नहीं है और इसे हल करने के लिए आयात शुल्क ज्यादा से ज्यादा किया जाना चाहिये। देश को आयात पर निर्भर रहने के बजाय खुद का तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने से ही इन समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है।
बृहस्पतिवार को तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:
सरसों तिलहन - 7,020-7,070 (42 प्रतिशत कंडीशन का भाव) रुपये प्रति क्विंटल।
अंतर्राष्ट्रीय कारणों की वजह से गिरा रुपया, डरने की जरूरत नहीं: सरकार
रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, लेकिन उसका करेंसी बाजार में हस्तक्षेप कारगर नहीं होगा क्योंकि रुपये में गिरावट का कारण ग्लोबल हैं.
By: एजेंसी | Updated at : 14 Aug 2018 09:20 PM (IST)
नई दिल्लीः डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये पर केंद्र सरकार ने बयान दिया है और कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय कारणों की वजह से रुपया गिरा है और इससे डरने की जरूरत नहीं है. आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये के अब तक के निचले स्तर पर पहुंचने के लिये ‘बाहरी कारणों’ को जिम्मेदार ठहराया विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता है. उन्होंने कहा कि जब तक अन्य करेंसी के मुताबिक घरेलू रुपये में गिरावट होती है, इसमें चिंता की कोई बात नहीं है. तुर्की की आर्थिक चिंता से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया आज कारोबार के दौरान 70.1 रुपये प्रति डॉलर के स्तर तक गिर गया. हालांकि बाद में इसमें सुधार आया और अंत में कल के मुकाबले सुधरकर 69.89 पर बंद हुआ.
गर्ग ने कहा, ‘रुपये में गिरावट का कारण बाहरी कारक हैं इस समय इसको लेकर चिंता की कोई वजह नहीं है.’ उन्होंने कहा कि अगर रुपया 80 रुपये प्रति डॉलर तक चला जाता है और अगर दूसरी करेंसी में भी गिरावट इसी स्तर पर रहती है तो चिंता का कोई कारण नहीं होगा. गर्ग ने कहा कि भारतीय रुपया अभी भी कुछ दूसरी करेंसी की तुलना में बेहतर स्थिति में है.
उन्होंने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है, लेकिन उसका करेंसी बाजार में हस्तक्षेप कारगर नहीं होगा क्योंकि रुपये में गिरावट का कारण ग्लोबल हैं. तीन अगस्त को खत्म हफ्ते में केंद्रीय बैंक के पास 402.70 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार था. यह पिछले सप्ताह से 1.49 अरब डॉलर कम है.
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि डॉलर की तुलना में सभी करेंसी कमजोर हुई हैं लेकिन अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपये में उतनी विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता गिरावट नहीं आयी है. कुमार ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि रुपया 69 से 70 के बीच स्थिर होना चाहिए क्योंकि अगर आप देश में बांड और शेयर समेत विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता आने वाले निवेश को देखें तो यह स्तर विदेशी निवेश के लिहाज से आकर्षक रहा है.’’
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आईसीआईसीआई बैंक के बी प्रसन्ना ने कहा कि तुर्की संकट का सभी उभरते बाजारों पर प्रभाव पड़ा है और रुपये पर भी उसका असर है.
Published at : 14 Aug 2018 09:19 PM (IST) Tags: dollar currency Rupee हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi
लुढ़कते रुपये से निपटने की चुनौती
हाल विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता में अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में इजाफा करने और मौद्रिक नीति को आगे भी सख्त बनाये जाने के संकेत से 28 सितंबर को डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर लुढ़क कर 81.93 पर पहुंच गया. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रुपये में यह सबसे बड़ी गिरावट है. डॉलर के मुकाबले रुपये की ऐतिहासिक गिरावट के बाद कई भारतीय कंपनियां बचाव के लिए फॉरवर्ड कवर की कवायद में हैं, क्योंकि उन्हें चिंता है कि फेडरल रिजर्व के ताजा संकेत से इसी वर्ष ब्याज दर में और इजाफा हो सकता है, जिससे डॉलर और ज्यादा मजबूत होगा.
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अब चीन-ताइवान तनाव और वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच रुपये की कीमत में बड़ी फिसलन के कारण जहां भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ रही हैं, वहीं विकास योजनाएं भी प्रभावित हो रही हैं. विदेशी मुद्रा भंडार 16 सितंबर को दो साल के निचले स्तर पर घट कर 545.65 अरब डॉलर रह गया. इतना ही नहीं, महंगाई से जूझ रहे आम आदमी की चिंताएं बढ़ती हुई दिख रही हैं.
उर्वरक एवं कच्चे तेल के आयात बिल में बढ़ोतरी होगी और अधिकतर आयातित सामान महंगे हो जायेंगे. यद्यपि रुपये की कमजोरी से आइटी, फार्मा, टेक्सटाइल जैसे विभिन्न उत्पादों के निर्यात की संभावनाएं बढ़ी हैं, लेकिन अधिकतर देशों में मंदी की लहर के कारण निर्यात की चुनौती भी दिख रही है. रुपये के कमजोर होने का प्रमुख कारण बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग बहुत ज्यादा हो जाना है.
वर्ष 2022 के शुरू से ही संस्थागत विदेशी निवेशक बार-बार भारतीय बाजारों से पैसा निकालते हुए दिखे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि फेडरल रिजर्व द्वारा अमेरिका में ब्याज दरें तेजी से बढ़ायी जा रही हैं. कई विकसित देशों में भी ब्याज दरें बढ़ रही हैं. ऐसे में निवेशक अमेरिका व अन्य विकसित देशों में अपने निवेश को ज्यादा लाभप्रद और सुरक्षित मानते हुए भारत की जगह उन देशों में निवेश को प्राथमिकता भी दे रहे हैं. गौरतलब है कि अभी भी डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा है.
दुनिया का करीब 85 फीसदी व्यापार डॉलर की मदद से होता है और 39 फीसदी कर्ज डॉलर में दिये जाते हैं. इसके अलावा, कुल डॉलर का करीब 65 फीसदी उपयोग अमेरिका के बाहर होता है. चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी करीब 80-85 फीसदी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है, इसलिए रूस-यूक्रेन युद्ध से कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी की वजह से भारत द्वारा अधिक डॉलर खर्च करना पड़ रहा है.
कोयला, उर्वरक, वनस्पति तेल, दवाई के कच्चे माल, रसायन आदि का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है, ऐसे में डॉलर की जरूरत और बढ़ गयी है. भारत जितना निर्यात करता है, उससे अधिक आयात करता है. इससे देश का व्यापार संतुलन लगातार प्रतिकूल होता जा रहा है. कमजोर होते रुपये की स्थिति से निश्चित ही सरकार और रिजर्व बैंक चिंतित हैं और इस चिंता को दूर करने के लिए यथोचित कदम भी उठा रहे हैं. रिजर्व बैंक के प्रयासों से रुपये की तेज गिरावट को थामने में मदद मिली है.
आरबीआइ ने कहा है कि अब वह रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देगा. उसका कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयुक्त उपयोग इस गिरावट को थामने में किया जायेगा. रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश की ओर बढ़ाने और रुपये में गिरावट को थामने, सरकारी बांड में विदेशी निवेश के मानदंड को उदार बनाने तथा कंपनियों के लिए विदेशी उधार सीमा में वृद्धि सहित कई उपायों की घोषणा की है. ऐसे उपायों से विदेशी निवेश पर कुछ अनुकूल असर पड़ा है.
इस समय डॉलर के खर्च में कमी और डॉलर की आवक बढ़ाने के लिए रणनीतिक उपाय जरूरी हैं. अब रुपये में वैश्विक कारोबार बढ़ाने के मौके को भुनाना होगा. रिजर्व बैंक द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में करने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है. इससे डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों के साथ व्यापार के लिए डॉलर के बजाय रुपये में भुगतान को बढ़ावा देने की नयी संभावनाएं दिख रही हैं.
सात सितंबर को वित्त मंत्रालय और सभी हितधारकों की बैठक में निर्धारित किया गया कि बैंकों द्वारा दो व्यापारिक साझेदार देशों की मुद्राओं की विनिमय दर बाजार आधार पर निर्धारित की जायेगी. निर्यातकों को रुपये में व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन और नये नियमों को जमीनी स्तर पर लागू करने की रणनीति तैयार की गयी है, जिसे वाणिज्य मंत्रालय और रिजर्व बैंक आपसी तालमेल से लागू करेंगे.
उल्लेखनीय है कि आगामी कुछ ही दिनों में भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय कारोबार एक-दूसरे की मुद्राओं में किये जाने की संभावनाएं हैं. इसी तरह भारत अन्य देशों के साथ भी एक-दूसरे की मुद्राओं में भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित करने की डगर पर आगे बढ़ रहा है. इससे रुपये को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेन-देन के लिए अहम मुद्रा बनाने में मदद मिलेगी. एक ओर इससे जहां व्यापार घाटा कम होगा, वहीं विदेशी मुद्रा भंडार घटने की चिंताएं भी कम होंगी.
निश्चित रूप से रिजर्व बैंक के इस कदम से भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक वैश्विक मुद्रा के रूप में स्वीकार कराने की दिशा में मदद मिलेगी. जिस तरह चीन और रूस जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को तोड़ने की दिशा में सफल कदम बढ़ाये हैं, उसी तरह अब रिजर्व बैंक के निर्णय से भारत की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता के कारण रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिल सकती है.
नि:संदेह, रुपये में अत्यधिक उतार-चढ़ाव न तो निर्यातकों के पक्ष में है और न ही आयातकों के लिए फायदेमंद है. इसलिए व्यापार से फायदा लेने के लिए रुपया निश्चित रूप से स्थिर स्तर पर होना चाहिए. ऐसे में हम उम्मीद करें कि सरकार द्वारा उठाये जा रहे नये रणनीतिक कदमों से जहां प्रवासी भारतीयों विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता से अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हो सकेगी, वहीं उत्पाद निर्यात और सेवा निर्यात बढ़ने से भी विदेशी मुद्रा की आमद बढ़ेगी.
इन सबके कारण डॉलर की तुलना में रुपया एक बार फिर संतोषजनक स्थिति में पहुंचता हुआ दिख सकेगा. इससे देश की आर्थिक मुश्किलें कम होंगी तथा महंगाई से पैदा हुई पीड़ा भी कम होगी. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जल्दी ही रुपये का मूल्य स्थिर हो सकेगा और विदेशी मुद्रा भंडार में भी बढ़ोतरी होगी.
भूटान का आर्थिक संकट कितना गंभीर है?
मूल्य वृद्धि और खाद्य सुरक्षा चिंताएं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियन स्टडीज की प्रोफेसर संगीता थपलियाल ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस देश की स्थिति की तुलना अभी श्रीलंका से नहीं की जा सकती है।"
भोजन, ईंधन और दवा का भुगतान करने के लिए पैसे खत्म होने के बाद श्रीलंका की कर्ज से लदी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई जो महीनों तक विरोध प्रदर्शनों का कारण बना।
हालांकि, थपलियाल ने कहा कि भूटान उन लोगों के लिए इसी तरह की आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है जो वर्तमान में अधिकांश राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने विशेष रूप से पेट्रोलियम की बढ़ती कीमतों की स्थिति को और खराब कर दिया है।"
उन्होंने आगे कहा, "अन्य देशों की तरह, भूटान की अर्थव्यवस्था में भी मुद्रास्फीति, आर्थिक झटके और नौकरियों का नुकसान हुआ है।"
विशेषज्ञों के अनुसार, मज़बूत डॉलर और गिरते भारतीय रुपये जिससे भूटान की नगुलट्रम मुद्रा आंकी जाती है वह भी उच्च आयात लागत की ओर ले जा रही है। यह उस देश के लिए आदर्श से विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता बहुत दूर है जो विदेशों के उत्पादों पर बहुत अधिक निर्भर है।
भूटान चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "भारत द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों से स्थानीय कीमतों में और बढ़ोतरी की चिंता बढ़ गई है।" उन्होंने कहा, "खाद्य आपूर्ति को लेकर चिंता है।"
भूटान अपने जलविद्युत और पर्यटन क्षेत्रों पर केंद्रित है जो देश के बाहर से राजस्व पैदा करते हैं।
इस बीच सकल घरेलू उत्पाद के मामले में भूटान के विनिर्माण क्षेत्र का शेयर एक दशक से अधिक समय से स्थिर है जबकि औद्योगिक क्षेत्र मुख्य रूप से निर्माण, खनन और बिजली द्वारा संचालित था।
वित्त मंत्री नामगे शेरिंग ने कहा है कि भूटान एक 'अज्ञात गंतव्य' की ओर बढ़ रहा है।
इस तरह की रूपरेखा आर्थिक संरचना को क्षेत्रीय और बाहरी झटकों के प्रति संवेदनशील बनाती रही है, क्योंकि जीडीपी, निर्यात और सरकारी राजस्व ज़्यादातर सिर्फ़ दो क्षेत्रों से पैदा होते हैं।
हाल ही में हुई एक बैठक में भूटान के वित्त मंत्री ल्योंपो नामगे शेरिंग ने कहा कि सरकार आयात पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं है लेकिन विदेशी भंडार की रक्षा में मदद करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करेगा।
शेरिंग ने कहा, "मैं यह नहीं कह सकता कि आर्थिक संकट का कोई ख़तरा नहीं है। मैं यह नहीं कह सकता कि हम संकट में नहीं हैं। साथ ही, मैं यह नहीं कह सकता कि हम सहज हैं।" उन्होंने कहा कि ये हिमालयी राष्ट्र "अज्ञात गंतव्य" की ओर बढ़ रहा है।
शेरिंग द्वारा हाल ही में पेश किए गए वार्षिक बजट में भूटान का अब तक का सबसे अधिक राजकोषीय घाटा 22.882 बिलियन नुग्त्रुम ( 283 मिलियन यूरो) अर्थात देश के सकल घरेलू उत्पाद का 11.25% दिखाया गया है।
कम हो रहा है विदेशी भंडार?
भूटान के रॉयल मॉनेटरी अथॉरिटी द्वारा जुलाई में जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि विदेशी मुद्रा भंडार दिसंबर के अंत में घटकर 970 मिलियन डॉलर (955 मिलियन यूरो) हो गया। यह अप्रैल 2021 में 1.46 बिलियन डॉलर था। जबकि कुल विदेशी ऋण कोरोनवायरस महामारी से पहले 2.7 बिलियन डॉलर से बढ़कर 3.2 बिलियन डॉलर हो गया।
देश के पास 14 महीने के लिए आवश्यक वस्तुओं के आयात को पूरा करने के लिए पर्याप्त विदेशी भंडार है। भूटान का संविधान देश को 12 महीने के आयात को पूरा करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखने का अधिकार देता है।
राजधानी थिंपू से भूटान के राष्ट्रीय अखबार कूएनसेल के सीईओ उग्येन पेनजर ने डिडब्ल्यू को बताया, "हम आयात पर निर्भरता वाले देश हैं। हमें अन्य क्षेत्रों की ओर ध्यान देना शुरू करना होगा और नीतियों को सुधारना होगा जो अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए राजस्व ला सकते हैं। कृषि के लिए नई तकनीक में निवेश करना एक शुरुआत हो सकती है।"
उन्होंने आगे कहा, "हम डरे नहीं हैं, लेकिन व्यापार घाटा बढ़ रहा है।"
अभी के लिए भूटान को अपने विदेशी मुद्रा भंडार को कम होने से रोकने के लिए व्यापार घाटे के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
हिमालय का पानी भूटान के जलविद्युत क्षेत्र के लिए वरदान साबित हुआ है।
भूटान के पर्यटन उद्योग को पुनर्जीवित करना
एसोसिएशन ऑफ भूटानी इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष पेमा तेनज़िन वित्तीय संकट को लेकर चिंतित थे।
तेनज़िन ने डीडब्ल्यू को बताया, "पर्यटन क्षेत्र प्रभावित हुआ है और खालीपन ने ढांचागत परियोजनाओं में ठहराव ला दिया है क्योंकि महामारी ने आजीविका को प्रभावित किया है। लेकिन हम वापस हासिल करेंगे।"
पर्यटन जो 50,000 से अधिक लोगों को रोज़गार देता है और भूटान के राजस्व में सबसे अधिक योगदान देने वालों में से एक है उसे विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता किसी भी अन्य क्षेत्र से सबसे ज्यादा झटका लगा।
पिछले वर्ष की तुलना में 2019-2020 में पर्यटन से राजस्व में 41% की गिरावट आई है।
2020 में केवल 28,000 पर्यटक भूटान आए जिससे 19 मिलियन डॉलर (18.67 मिलियन यूरो) का राजस्व प्राप्त हुआ। यह 2019 के 3,15,599 पर्यटकों के आंकड़े से काफी कम था जिससे सरकारी आंकड़ों के अनुसार 225 मिलियन डॉलर कमाई की गई थी।
महामारी शुरू होने के बाद पिछले दो साल से अधिक समय गुजरने के बाद पहली बार सितंबर से यह पर्वतीय राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए फिर से खुल जाएगा।
हालांकि, रेट को बढ़ा दिया गया है और प्रति रात प्रति पर्यटक 200 डॉलर (196 यूरो) का सस्टेनेबल डेवलपमेंट शुल्क लिया जाएगा। यह 65 डॉलर से बढ़ोतरी की गई है जो तीन दशकों से लिया जा रहा था।
जलविद्युत की तेज़ी
भूटान का आर्थिक विकास उसके जलविद्युत क्षेत्र के विकास से जुड़ा है। यह देश भारत को पैदा हुए ऊर्जा का लगभग 70% निर्यात करता है।
भारत भूटान का सबसे बड़ा निर्यात बाजार भी है साथ ही सबसे महत्वपूर्ण व्यापार भागीदार भी है जो भूटान के व्यापार का 50% हिस्सेदार है और देश के शीर्ष विदेशी निवेशकों में से एक है। विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता सबसे बड़ी चिंता जबकि भूटान भारत की नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट नीतियों के लिए महत्वपूर्ण रहा है जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में व्यापार और ऊर्जा संबंधों को बढ़ावा देना है।
ऐसी आशंकाएं हैं कि लंबे समय तक चलने वाले आर्थिक संकट से भारत और भूटान के बीच संबंधों में खटास आ सकती है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसका लाभ चीन उठाने की स्थिति में हो सकता है।
चीन के साथ तटस्थ व्यवहार करते हुए भूटान ने अब तक भारत के साथ एक अनूठा संबंध बनाए रखा है।
थपलियाल ने कहा, 'इस स्थिति में भारत के लिए यह जरूरी है कि वह भूटान की मदद करे, जिसके साथ उसके खास संबंध हैं।'
उन्होंने कहा, "एक आर्थिक रूप से मजबूत भारत जो भूटान को उसकी आर्थिक चुनौतियों का सामना करने में मदद करने में सक्षम है, लंबे समय में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत और स्थिर बनाए रखेगा।"
(कीथ वाकर द्वारा इसे संपादित किया गया।)
साभार : DW
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