क्या शेयर बाजार में निवेश बेहतर: क्या करें निवेशक
बढ़ती मंहगाई, बेरोज़गारी और कमजोर विकास की दर के बीच बढ़ता शेयर बाजार सोचने पर मजबूर करता है कि क्या शेयर निवेश अभी भी बेहतर है. खासकर ऐसे वक्त जब वैश्विक स्थिति डांवाडोल है, बाजार मंदी का संकेत दे रहे हैं और विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से पैसा निकाल रहे हैं. भारी उथल पुथल चारों तरफ व्याप्त है.
दूसरी तरफ भारतीय शेयर बाजार में देशी निवेशक भरपूर पैसा लगाते जा रहें हैं जिससे शेयर बाजार मजबूत दिख रहा है. जहां विदेशी निवेशक क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं पैसा निकाल रहे हैं और सुरक्षित जगह अमेरिका में पैसा लगा रहे हैं क्योंकि अमेरिका ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर दी है.
बढ़ती ब्याज दरों के कारण अमेरिका में ज्यादा निवेश होना न केवल डालर को मजबूत कर रहा है अपितु पूरे विश्व में ब्याज दरों को बढ़ाने के संकेत दे रहा है.
दीर्घ काल में अमेरिका को ही इसका नुकसान भुगतना पड़ेगा तब डालर कमजोर भी होगा और अमेरिकन कंपनियों का प्राफिट भी कम होगा, लेकिन फिलहाल भारतीय शेयर बाजार की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती.
तो सरकार को क्या कदम उठाने होंगे और क्या निवेशक को शेयर बाजार में बने रहना चाहिए कि बाहर हो जाना चाहिए? इसके लिए सबसे पहले इन तथ्यात्मक बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा:
१. विदेशी संस्थागत निवेशकों (FPI) ने इस महीने में अब तक भारतीय शेयर बाजारों से करीब 6,000 करोड़ रुपए की निकासी की है.
२. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में आ रही गिरावट से इस निकासी को बल मिला है.
३. इसके साथ ही FPI ने वर्ष 2022 में अब तक कुल 1.75 लाख करोड़ रुपये की निकासी कर ली है.
४. एफपीआई की गतिविधियों के उतार-चढ़ाव से भरपूर रहने की ही स्थिति दिख रही है.
५. डिपॉजिटरी आंकड़ों के मुताबिक, एफपीआई ने अक्टूबर में अब तक 5,992 करोड़ रुपये की निकासी भारतीय बाजार से कर ली है. इस हिसाब से पिछले कुछ दिनों में उनकी निकासी की मात्रा में थोड़ी गिरावट आई है.
६. जियो-पॉलिटिकल रिस्क बने रहने, मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर और बॉन्ड यील्ड में वृद्धि की उम्मीद से एफपीआई की निकासी का सिलसिला जारी रह सकता है.
७. एफपीआई के निकट अवधि में ज्यादा बिक्री करने की संभावना नहीं है लेकिन डॉलर में कमजोरी आने के बाद ही वे खरीदार की स्थिति में लौटेंगे.
८. इस तरह एफपीआई का रुख अमेरिकी मुद्रास्फीति के रुझान और फेडरल रिजर्व के मौद्रिक नजरिये पर निर्भर करेगा.
९. बाजार विश्लेषकों का मानना है कि एफपीआई की बिकवाली के बावजूद घरेलू संस्थागत निवेशकों और खुदरा निवेशकों के खरीदार बने रहने से शेयर बाजारों को मजबूती मिल रही है.
१०. अगर एफपीआई पहले बेचे गए शेयर को ही आज के समय में खरीदना चाहेंगे तो उन्हें उसकी बढ़ी हुई कीमत चुकानी होगी.
यह अहसास नकारात्मक माहौल में भी एफपीआई की बिकवाली को रोकने का काम कर रहा है.
११. सितंबर में एफपीआई ने भारतीय बाजारों से करीब 7,600 करोड़ रुपये की निकासी की थी.
१२. डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत गिरने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के सख्त रुख से एफपीआई के बीच बिकवाली का जोर रहा था.
१३. भारत से संबंधित किसी जोखिम के बजाय डॉलर को मिल रही मजबूती विदेशी निवेशकों की इस निकासी की मुख्य वजह रही है.
१४. बीते सप्ताह डॉलर के मुकाबले रुपया 83 रुपये से भी नीचे पहुंच गया जो कि इसका अब तक का सबसे निचला स्तर है.
१५. एफपीआई ने खास तौर पर वित्त, एफएमसीजी और आईटी क्षेत्रों में बिकवाली की है.
१६. इक्विटी बाजारों के क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं अलावा विदेशी निवेशकों ने ऋण बाजार से भी अक्बूटर में 1,950 करोड़ रुपये की निकासी की है.
उपरोक्त तथ्यों से साफ है कि सरकार को शेयर बाजार और रूपए की मजबूती के लिए ये कदम उठाने होंगे:
१. ब्याज दरें बढ़ाने की बजाय औद्योगिक और कृषि उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान देना होगा.
२. डालर पर निर्भरता को कम करने पर जोर देना होगा और इंतजार करना होगा डालर में कमजोरी आने का.
३. सोने के आयात को कम करना होगा.
४. विदेशी निवेशकों को यह समझाने की कोशिश करनी होगी कि वैश्विक दृष्टिकोण से भारत में निवेश बेहतर और सुरक्षित है और इसके लिए धार्मिक उन्माद पर फोकस न करके मजबूत आर्थिक नीतियों पर ध्यान देना होगा.
५. शेयर बाजार में पैसे उगाही की परमीशन सिर्फ और सिर्फ अच्छी असेट बेस एवं लाभ कमाने वाली कंपनियों को दिया जाना चाहिए.
६. कर ढांचे में तर्कसंगतता और सरलीकरण लाने पर जोर देना होगा.
७. आधारभूत संरचना पर खर्च समय पर पूरे हो, इस तथ्य पर ध्यान देते हुए निवेश आकर्षित करना होगा.
८. जिनपिंग के फिर चुने जाने के बाद जरूरी हो गया है कि हम अपनी विदेश नीति में परिवर्तन लाए ताकि अपने पड़ोसियों से कूटनीतिक और व्यापारिक संबंधों में सुधार आए.
९. नई टेक्नोलॉजी के उपयोग से आयातित वस्तुओं पर निर्भरता कम करते हुए काले धन को अर्थव्यवस्था में नियंत्रित करना होगा.
१०. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना होगा और सरकारी खर्च पर लगाम कसनी होगी.
इसी तरह निवेशक भी फिलहाल शेयर बाजार में सतर्कता से निवेश करें जबतक वैश्विक हालात में कुछ निर्णायक समझौते नहीं हो जाते, खासकर भविष्य में चीन की ताइवान के प्रति क्या नीति होती है और रूस युक्रेन युद्ध रुकने के आसार पैदा होते है कि नहीं. साथ ही सरकार द्वारा आर्थिक नीतियों के प्रति कितनी संवेदनशीलता दिखाई जाती है, उस पर भी शेयर बाजार में पैसे की सुरक्षा निर्भर होगी.
दूसरी बात भारत का हाउसिंग मार्केट वर्तमान में अहम स्टेज में खड़ा है. उम्मीद जताई जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक के भविष्य में रेपो रेट में बढ़ोतरी के चलते ब्याज दरें 2019 के लेवल से भी ऊपर जा सकती हैं. आरबीआई और नेशनल हाउसिंग बैंक के पास उपलब्ध डेटा के अनुसार भारत में प्रॉपर्टी की एवरेज वैल्यू भी 2023 में तेजी से बढ़ने की संभावना है.
नतीजतन, अगर आप अब तक अपने सपनों का घर खरीदने के प्लान को स्थगित कर रहे हैं तो यह फेस्टिव सीजन आपके लिए सही समय हो सकता है.
मतलब साफ़ है कि फिलहाल पैसा सुरक्षित हो, भले ही आमदनी कुछ कम हो – इस सिद्धांत पर अगले एक वर्ष तक चलना होगा और साथ ही सरकार को भी अपने खर्चे पर नियंत्रण करना होगा. जरुरत से ज्यादा उधारी और पैसे बांटने से बचना होगा लेकिन आने वाले समय में होने वाले चुनाव के क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं मद्देनजर ऐसा कुछ हो पाना संभव प्रतीत नहीं होता दिखता और इसीलिए निवेशक शेयर बाजार के बजाय सरकार द्वारा रजिस्टर्ड प्रतिभुतियों में निवेश करें और रियल एस्टेट में लगाए तो क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं ही बेहतर है.
स्टॉक मार्केट: शेयर बाजार की गिरावट से नहीं हों परेशान, बुरे दिनों के बावजूद 180 प्रतिशत से अधिक का लाभ हुआ
जब शेयर बाजार पूरे हफ्ते तक गिरता है तो निवेशकों को इसका कारण जानने और साथ ही सलाह लेने की इच्छा होती है। हालांकि कोरोना वायरस का प्रभाव जोरों से हो रहा है और कोई नहीं जानता कि वास्तव में बाजार क्यों गिरा और साथ ही यह भी आर्थिक दिक्कतें इसकी गिरावट में कितना योगदान कर रही हैं। आपको कोई भी यह नहीं बता सकता है कि कोरोना वायरस संयुक्त राज्य अमेरिका को कैसे प्रभावित करेगा, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या प्रकोप लंबी अवधि में भी मुनाफे को कम करेगा?
क्या आप लंबी अवधि के निवेशक हैं?
हम में से अधिकांश लोग उस श्रेणी में आते हैं जिसमें हम सेवानिवृत्ति के लिए बचत कर रहे हैं। हम शेयरों में निवेश करते हैं क्योंकि यह पूंजीवाद का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदने का एक अच्छा तरीका साबित हुआ है। शेयरों को जमा करने के लिए निवेश में बने रहिए और इस सिस्टम ने उदारता से उन धैर्यवान लोगों को अच्छा भुगतान करने का काम किया है जिन्होंने छह या सात दशकों तक पोर्टफोलियो ड्राइंग, वर्किंग और सेविंग का काम किया है।
फिर भी, निवेशकों ने जिस तरह इस हफ्ते की गिरावट का अनुभव किया, शायद ही कभी उन्हें अच्छा लगे। और शायद आपको यह जानने की इच्छा हो रही हो कि कोरोना वायरस का यह प्रकोप लाखों अमेरिकियों को थोड़ी देर के लिए बंद करने को मजबूर कर दे। यदि ऐसा तो अपने आप को निम्नलिखित बातें याद दिलाना: स्टॉक्स अपनी बचत मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए हैं, बाजार अपने पर्सनल फाइनेंस के लिए एक प्रॉक्सी नहीं है, और आप एक लंबा खेल खेल रहे हैं - हर बार हम हाल के वर्षों में शेयर बाजार के इसी पहलू के बारे में हमेशा अपनी चिंता जाहिर करते रहे हैं। क्या यह बढ़िया नहीं है? यदि आप पिछले एक दशक से शेयर बाजार में निवेश करते रहें हैं तो बुरे दिनों के बावजूद 180 प्रतिशत से अधिक का लाभ आपका है।
तेजी का बाजार आम तौर पर लंबे समय तक नहीं टिकता है। शायद यह अंत है, और अगर यह है, तो यह हो सकता है कि स्टॉक्स में 10 प्रतिशत और गिरावट आ जाए या शायद 20 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है, या 40 प्रतिशत तक। लेकिन बाजार तब फिर से बढ़ना शुरू होगा तो इसकी कीमत पिछले 10 या 15 वर्षों में शेयरों के भुगतान से अधिक हो सकती है।
इस तरह की स्थिति पर टीवी पर चिल्लाने वाले ज्यादातर लोग पेशेवर निवेशक होते हैं जो उठापटक के माहौल में ऊंचे भाव पर बेचने और कम पर खरीदने की कोशिश कर रहे होते हैं। लेकिन आपका लक्ष्य वह नहीं है। वह जल्द नहीं बदलने जा रहा है, क्योंकि पूंजीवाद जस का तस रहने वाला है।
नेटवर्थ को परिभाषित करना
अगले साल बाजार में एक बड़ा उछाल आ सकता है, या वेतन बढ़ सकता है, और अधिक कमाने की आपकी क्षमता को इस समीकरण का हिस्सा होना चाहिए। इसके अलावा नेटवर्थ को बराबर सेल्फ वर्थ की जरूरत नहीं है। फिर भी, एक सकारात्मक और बढ़ते डॉलर का आंकड़ा एक अच्छी बात है। इसलिए अब अपने समीकरण के परिसंपत्ति पक्ष (Asset Side) के अन्य पहलुओं पर एक नज़र डालें। इसका एक अच्छा खासा हिस्सा होम इक्विटी हो सकता है । क्या पिछले कुछ दिनों में यह बहुत गिर गया? नहीं? तो ठीक।
क्या आप फिर से अपने बांड म्यूचुअल फंड में स्टाक के जितनी गिरावट की उम्मीद कर रहे हैं फिर, शायद नहीं। याद रखें कि आपकी जो भी कीमत है, स्टॉक्स उसका सिर्फ एक हिस्सा है। इसका रास्ता दूर तक बंद है। स्टॉक्स लंबी दौड़ के लिए होता है: यहां स्नातक और रिटायर के बीच कई दशक का फासला होता है।
यदि आप रिटायर के मुहाने पर हैं तो ध्यान रखें कि आपके पास एक बड़ा आइडिया है जो कम से 20 और साल तक रहने वाला है, जो लंबी गिरावट के बावजूद आपके शेयरों में उछाल लाने के लिए बहुत समय प्रदान करता है।
(और चीजें वास्तव में थोड़ी देर के लिए गंभीर लग सकती हैं, जैसा कि साल 2000 और 2010 के बीच हुआ था, जब सबसे बड़ी अमेरिकी कंपनियों के शेयर की कीमतों में डिविडेंड का भी निवेश करने के बावजूद कोई प्रगति नहीं हुई)।
यदि आपके बच्चे कॉलेज जाने वाले हैं या आप अगले या दो साल में घर की खरीद के लिए भुगतान कर रहे हैं, तो आप शायद शेयरों में ज्यादा पैसा नहीं लगा पाएंगे। क्या आपके पास 529 कॉलेज सेविंग प्लान के हिस्से के रूप में टारगेट-डेट म्यूचुअल फंड में पैसा है? कृपया जांच कीजिए कि शेयरों में कितना निवेश होता है और क्या आप निवेश की इस राशि से सुरक्षित हैं। यदि आप 20 साल की उम्र के हैं और पिछले कुछ सालों से आपने निवेश करना शुरू किया है तो मैं आपको नहीं देख सकता हूं।
आप यह याद कर सकते हैं कि पैरेंट्स असहाय रूप से देखते हैं क्योंकि उनकी घर की आधी इक्विटी और उनके रिटायरमेंट का निवेश जमा रहता है। साल 2008 के वित्तीय संकट के बाद कम से कम पेपर पर तो रहता ही है। यदि एक पैरेंट्स अपना जॉब भी खो देता है और आपने एजुकेशन लोन भी ले रखा है तो इसमें कोई अजूबा नहीं कि आप निवेश के जोखिम के बारे में कम बोलें। यह आज के लिए नहीं और कल के लिए भी नहीं हो सकता है। इसलिए सोचना बंद करें। ज्यादा अनुभव के साथ किसी और से बात करें या एक अच्छे जानकार वाला नजरिया अपनाएं।
रूस-यूक्रेन का शेयर मार्केट पर असर: बाजार की गिरावट से न घबराएं निवेशक, लंबे समय के लिए अच्छी क्वालिटी वाले शेयर्स में पैसे लगाएं
रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई के बाद ग्लोबल मार्केट में भारी गिरावट है। रूस का स्टॉक एक्सचेंज ट्रेडिंग के लिए बंद कर दिया गया है। भारतीय बाजार 3% से ज्यादा गिरे हैं। ऐसे में निवेशकों को इससे घबराने की जरूरत नहीं है। बल्कि लंबे समय के लिए बाजार में निवेश कर सकते हैं।
ऐसी स्थितियां हमेशा आती हैं
बाजार के जानकारों का मानना है कि ऐसी स्थितियां हमेशा आती रहती हैं और आगे भी आएंगी। पर हर बार बाजार भारी गिरावट से उबरा ही है। चाहे वह 2008 का लेहमैन ब्रदर्स का संकट हो, 2019 का कोरोना हो या फिर अब रूस और यूक्रेन का मामला हो। कोरोना में तो भारतीय बाजार का सेंसेक्स 40 हजार से टूटकर 25 हजार तक जा चुका था। पर उसके बाद इसने 62 हजार का नया रिकॉर्ड भी बनाया।
विश्लेषक कहते हैं कि इस तरह की स्थितियां निवेशकों के लिए अवसर लेकर आती हैं। ऐसे माहौल में सस्ते भाव पर अच्छ शेयर्स मिलते हैं। इसलिए निवेशकों को इस आपदा के अवसर के समय धीरज रखकर खरीदारी करने की जरूरत है।
निवेशक न घबराएं- चौकसी
K.R.चौकसी के MD देवेन चौकसी कहते हैं कि निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है। जो बाजार में हैं, उन्हें बने रहना चाहिए। क्योंकि जो अभी की स्थिति है, वह हमेशा नहीं रहने वाली है। यूक्रेन-रूस का कोई न कोई हल निकलेगा। हालांकि, अगर इस युद्ध क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं में कोई और देश शामिल होते हैं तो स्थिति बिगड़ सकती है।
निफ्टी 400 पॉइंट्स और टूट सकता है
उनका कहना है कि आज अगर निफ्टी 16,600 के नीचे जाता है तो इसमें इस हफ्ते 400 पॉइंट्स की और गिरावट आ सकती है। हालांकि यह देखना होगा कि अगले दो-तीन दिनों में रूस और यूक्रेन का क्या तय होता है। वे कहते हैं कि विदेशी निवेशक ऐसे माहौल में भारत में सस्ते भाव पर शेयर खरीदने के लिए आ सकते हैं।
हालत काफी खराब है
SMC ग्लोबल के MD DK अग्रवाल कहते हैं कि यूक्रेन और रसिया की हालत काफी खराब है। मिलिट्री ऑपरेशन की जिस तरह बात कही जा रही है, वह अगर सही होती है तो फिर काफी भयानक असर बाजार पर देखने को क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं मिलेगा। उनका कहना है कि शॉर्ट टर्म में बाजार निगेटिव रहेगा।
आगे की स्थिति पर नजर रखनी होगी
वे कहते हैं कि आगे दोनों देशों के बीच की स्थिति कैसी होगी, इस पर बाजार की चाल तय होगी। उसका इंतजार निवेशकों को करना चाहिए। पर कोई नई खरीदारी अभी नहीं करनी चाहिए। एक दो दिन में बाजार और टूटता है तो अच्छे शेयर्स को फिर उचित भाव पर खरीदना चाहिए।
लंबे समय के लिए बने रहें निवेशक
अग्रवाल कहते हैं कि लंबी अवधि के लिए जो निवेशक हैं, उनको बाजार में बने रहना चाहिए। अच्छी कंपनी से निकलने की कोशिश न करें। उनका मानना है कि बाजार यहां से 5% और टूट सकता है। यानी कि गुरुवार को 3% के अलावा यह गिरावट होगी।
अच्छी कंपनियों के शेयर्स खरीदें
वे कहते हैं कि निवेशकों को लंबे समय के लिए खरीदारी करनी चाहिए। वो भी ऐसी कंपनियों के शेयर्स में, जो अच्छे वैल्यू वाली हों, जो सही कीमत पर हों और इस तरह की स्थितियों में जिसकी कीमतें गिरी हों। निवेशकों को घबराकर बिकवाली नहीं करनी चाहिए। हमें भारत की ग्रोथ स्टोरी पर फोकस करने की जरूरत है।
कमोडिटी पर भी असर
कैपिटल वाया ग्लोबल के रिसर्च हेड गौरव गर्ग ने कहा कि रूस और यूक्रेन की वजह से कमोडिटी पर दबाव है और इस कारण शेयर बाजार पर भी असर है। बाजार में विदेशी निवेशक लगातार बिकवाली कर रहे हैं। हालांकि निवेशकों के लिए इस समय आकर्षक भाव पर शेयर उपलब्ध हैं।
यह संकट लोगों के नियंत्रण से बाहर है- राकेश भंडारी
निर्मल बंग सिक्योरिटीज के डायरेक्टर राकेश भंडारी कहते हैं कि अभी का जियो-पॉलिटिकल संकट लोगों के नियंत्रण से बाहर है। इसलिए निवेशकों को ऐसे समय में घबराने की जरूरत नहीं है। यह एक अस्थाई स्थिति है। इससे पहले कोविड-19 जैसी स्थिति दिखी थी और भविष्य में भी ऐसी स्थितियां आ सकती हैं। बाजार कॉर्पोरेट के प्रदर्शन पर रिएक्ट करता है।
रिटेल निवेशक नई खरीदारी नहीं करें
वे कहते हैं कि रिटेल निवेशको को नई खरीदारी करने से अभी के लिए बचना चाहिए। स्टॉक विशेष नजरिया रखना चाहिए। अगर निफ्टी 16,800 के नीचे जाता है तो इसमें और गिरावट आ सकती है। शॉर्ट टर्म के निवेशक चाहें तो इस समय मुनाफा वसूली भी कर सकते हैं और ज्यादा गिरावट में अगली खरीदारी के लिए तैयार रहना चाहिए।
ग्लोबल मार्केट पर दबाव
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेस के मुख्य निवेश रणनीतिकार डॉ. VK विजयकुमार कहते हैं कि यूक्रेन और रूस का संकट ग्लोबल स्टॉक मार्केट पर दबाव बना रहा है। अमेरिका का नैस्डैक अपने टॉप से अब तक 20% टूट चुका है। सुरक्षित माने जाने वाला सोना भी 1,913 डॉलर प्रति औंस के पार है। निवेशकों को ऐसे में देखो और इंतजार करो की नीति अपनानी चाहिए। इस समय खरीदारी से बचना चाहिए। निवेशक IT कंपनियों के स्टॉक्स को खरीद सकते हैं, जो अच्छी क्वालिटी के हों।
क्या मंदी में बॉन्ड में लगा पैसा डूब सकता है?
सरकार, कंपनियां, म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन बॉन्ड से पैसा जुटाती हैं. यह कर्ज की तरह होता है.
मंदी का असर आय पर पड़ता है
मंदी का सीधार असर सरकार और कंपनियों पर पड़ता है. कंपनी की आय घट जाती है. कंपनियों के उत्पाद के खरीदार नहीं रह जाते हैं. ऐसे में कई कंपनियां बंद होने को मजबूर हो जाती हैं. अगर ऐसी कंपनी ने निवेशकों को बॉन्ड जारी कर पैसा जुटाया है तो वह उसे वापस नहीं कर पाती. इसका मतलब है कि वह डिफॉल्ट कर जाती है. हालांकि, डिफॉल्ट का मतलब यह नहीं है कि निवेशकों का पैसा लौटान की कंपनी की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब कंपनी ने डिफॉल्ट करने के बावजूद बाद में निवेशकों का पैसा लौटाया है.
सरकारी बॉन्ड सबसे सुरक्षित
सरकार के बॉन्ड का पैसा वापस करने में डिफॉल्ट करने के मामले अपवाद हैं. यही वजह है कि सरकारी बॉन्ड को सबसे सुरक्षित क्या बाजार में गिरावट आने पर बांड सुरक्षित हैं निवेश माना जाता है. सरकार बॉन्ड का पैसा समय पर लौटाती है. उसके डिफॉल्ट करने से उसकी साख घट जाएगी. इससे सरकारी बॉन्ड में पैसा लगाने को कोई तैयार नहीं होगा. सरकार को अपने कामकाज के लिए काफी उधार लेना पड़ता है. वह बॉन्ड के जरिए उधार लेती है. कंपनी का कारोबार बंद हो सकता है. लेकिन, सरकार का काम कभी बंद नहीं हो सकता.
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